: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : ३९ :
राजवाणी
आ कारतक सुद पूर्णिमाए सौराष्ट्रना संत
श्रीमद्राजचंद्रजीनी एकसोमी जन्मजयंति छे, तेमना जन्मने १००
मुं वर्ष बेसशे. तेने अनुलक्षीने अहीं तेमना केटलाक वचनामृत
आपीए छीए...ते जिज्ञासुओने आत्मार्थनी प्रेरणा आपशे.
–ब्र. ह. जैन
• आत्मभावना भावतां जीव लहे केवळज्ञान रे...
• सुयोजक कृत्य करवामां दोरावुं होय तो विलंब करवानो आजनो दिवस नथी,
कारण के आज जेवो मंगळदायक दिवस बीजो नथी.
• आत्माने सत्यनो रंग चढावे ते सत्संग; मोक्षनो मार्ग बतावे ते मैत्री.
• वर्तनमां बालक थाओ; सत्यमां युवान थाओ; ज्ञानमां वृद्ध थाओ.
• ‘धर्म’ ए वस्तु बहु गुप्त रही छे. ते बाह्य–संशोधनथी मळवानी नथी. अपूर्व
अंतरसंशोधनथी ते प्राप्त थाय छे; ते अंतरसंशोधन कोईक महाभाग्यवंत
सदगुरु–अनुग्रहे पामे छे.
• एक भवना थोडा सुख माटे अनंतभवनुं अनंतदुःख नहीं वधारवानो प्रयत्न
सत्पुरुषो करे छे.
• उदय आवेलां कर्मोने भोगवतां नवां कर्म न बंधाय ते माटे आत्माने सचेत
राखवो–ए सत्पुरुषोनो महान बोध छे.
• मोक्षना मार्ग बे नथी. ते मार्गमां मतभेद नथी, असरळता नथी, उन्मत्तता
नथी, भेदाभेद नथी, मान्यामान्य नथी. ते मार्ग सरळ छे, ते समाधिमार्ग छे,
तथा ते स्थिर मार्ग छे, अने स्वाभाविक शांतिस्वरूप छे.
• मैत्री एटले सर्व जगतथी निर्वेरबुद्धि.
प्रमोद एटले कोईपण आत्माना गुण जोई हर्ष पामवो.
करुणा एटले संसारतापथी दुःखी आत्माना दुःखनी अनुकंपा पामवी.
उपेक्षा एटले निस्पृहभावे जगतना प्रतिबंधने विसारी आत्महितमां आववुं.
–ए भावनाओ कल्याणमय अने पात्रता आपनारी छे.