पाम्या योग जो.
आ कडी उपरना प्रवचनमां, साथे साथे पोतानी पण भावनाने
मलावतां पू. कानजीस्वामी कहे छे के–
जंगल, पहाड, गूफा आदि ज्यां सिंह–वाघ पण एकाकी विचरता, होय
एवा क्षेत्रमां एकाकी असंगतामां विचरवुं ते महा पवित्र दशाने धन्य
छे. धन्य छे तेवा शांत एकांत क्षेत्रमां एकत्वने साधना मुनिवरोने!
कोई पर्वतनी गूफामां अथवा टोच उपर चडी बेहद आनंदघन
स्वभावनी मस्तीमां लीन थई, जागृत ज्ञानदशानी एकाग्रता वडे
केवळज्ञान निधानने प्रगट करुं; एकांत निर्जन स्थानमां नग्न महान
निर्ग्रंथ मुनि थई सहज स्वरूपमां मग्न थई केवळज्ञान प्रगट करुं एवी
उत्साह साधकने ज आवे छे.”