Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : कारतक : २४९३
मोहने छोड.ने.आनंदित था
समयसारमां आचार्यदेवे अत्यंत करुणापूर्वक आत्मानुं
स्वरूप समजावीने मोह छोडवानो जोरदार उपदेश आप्यो छे.
तेना प्रवचनमांथी थोडोक नमुनो अहीं आप्यो छे.
उपयोगस्वरूप आत्माने जे जाणतो नथी ने रागादि परभावोरूपे के देहादि
जडरूपे ज पोताने अनुभवे छे ते अज्ञानी छे. एवा अप्रतिबुद्ध–अज्ञानीने आचार्यदेव
करुणा करीने समजावे छे के अरे जीव! आवा अज्ञानने तुं छोड, छोड! आत्मा सदाय
उपयोगस्वरूप छे एम तुं आनंदथी जाण. आ जड–चेतननी एकताना मोहने हवे तो तुं
छोड. आत्मानो रसिक थईने तुं ज्ञाननो स्वाद ले. रसिकजन तेने कहेवाय के जेने
ज्ञानमूर्ति आत्मानो अनुभव ज रुचिकर लागे छे. रागनी रुचिवाळो आत्मानो रसिक नथी.
अरे प्रभु! आत्माने जाण्या वगर अज्ञानथी तें चारगतिना बहु दुःखो सहन
कर्या; पण ते अज्ञानभावने छोडी शकाय छे तेथी सन्तो कहे छे के ते अज्ञानने हवे तो तुं
छोड. सर्वज्ञदेवे आत्मा सदाय उपयोगस्वरूपी ज जोयो छे. एवा आत्माना अनुभव
वडे मोह एक क्षणमां तरत ज छूटी जाय छे. माटे आत्मानो रसियो थईने ते मोहने तुं
तरत छोड.
रसिकजनोने एटले सम्यग्द्रष्टि जीवोने चैतन्यरसनो स्वाद अनुभवमां आव्यो
छे, आत्माना आनंदनो स्वाद चाखीने धर्मीने ते ज रुचिकर थयो छे, बीजा भावोनी
रुचि छूटी गई छे. अहो, चैतन्यना आनंदनो स्वाद अंदरमां प्रगट छे ते ज धर्मीने
रुचिकर छे, ते ज प्रिय छे. माटे हे जीव! तने पण जो आत्माना आनंदनो रस होय तो
तुं पण आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने अनुभवमां ले.
आचार्यदेव करुणाथी कहे छे के तुं मोहने छोडीने आत्माना ज्ञानरसनो आस्वाद
ले. सामा जीवमां मोहने छोडवानी लायकात देखी छे, मोहने छोडवानी पात्रतावाळो
जीव सामे ऊभो छे तेने संबोधीने आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! तुं मोहने छोड.
आचार्यदेवनो उपदेश निष्फळ नथी एटले के उपदेश झीलीने सामे मोहने छोडनारा
जीवो छे.