तेना प्रवचनमांथी थोडोक नमुनो अहीं आप्यो छे.
करुणा करीने समजावे छे के अरे जीव! आवा अज्ञानने तुं छोड, छोड! आत्मा सदाय
उपयोगस्वरूप छे एम तुं आनंदथी जाण. आ जड–चेतननी एकताना मोहने हवे तो तुं
छोड. आत्मानो रसिक थईने तुं ज्ञाननो स्वाद ले. रसिकजन तेने कहेवाय के जेने
ज्ञानमूर्ति आत्मानो अनुभव ज रुचिकर लागे छे. रागनी रुचिवाळो आत्मानो रसिक नथी.
छोड. सर्वज्ञदेवे आत्मा सदाय उपयोगस्वरूपी ज जोयो छे. एवा आत्माना अनुभव
वडे मोह एक क्षणमां तरत ज छूटी जाय छे. माटे आत्मानो रसियो थईने ते मोहने तुं
तरत छोड.
रुचि छूटी गई छे. अहो, चैतन्यना आनंदनो स्वाद अंदरमां प्रगट छे ते ज धर्मीने
रुचिकर छे, ते ज प्रिय छे. माटे हे जीव! तने पण जो आत्माना आनंदनो रस होय तो
तुं पण आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने अनुभवमां ले.
जीव सामे ऊभो छे तेने संबोधीने आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! तुं मोहने छोड.
आचार्यदेवनो उपदेश निष्फळ नथी एटले के उपदेश झीलीने सामे मोहने छोडनारा
जीवो छे.