Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 37

background image
: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : ११ :
[९]
ऋषभदेवनो पूर्वभव : सर्वार्थसिद्धि–देवलोक
(विषयो वगरना सुखनी सिद्धि)
सर्वार्थसिद्धि नामनुं ते विमान लोकना अंतभागथी बार जोजन नीचे छे.
सर्वश्रेष्ठ एवा ए विमाननी लंबाई–पहोळाई ने गोळाई जंबुद्वीप जेटली छे. स्वर्गना
६३ पटल (माळ) ना अंतिम भागमां चूडामणि रत्नसमान ते शोभे छे. ते विमानमां
उत्पन्न थनार जीवना सर्व मनोरथनी आपोआप सिद्धि थाय छे–तेथी तेनुं
‘सर्वार्थसिद्धि’ नाम सार्थक छे. घणुं ज ऊंचुं आ विमान पोतानी फरकती धजावडे जाणे
के मुनिवरोने सुख देवा माटे बोलावी रह्युं होय–एवुं शोभे छे. (एकावतारी भावलिंगी
मुनिवरो ज सर्वार्थसिद्धिमां जाय छे.) त्यांनी भूमि दिव्य मणि–रत्नोनी अनेकविध
रचना वडे शोभी रही छे.
आ प्रमाणे अकृत्रिम अने श्रेष्ठ रचनाओ वडे शोभायमान एवा आ
सर्वार्थसिद्धिविमानमां उपजीने आपणा चरित्रनायक क्षणमात्रमां तो यौवन दशाने
पाम्या. तेमनुं शरीर एवुं सुंदर हतुं के जाणे अमृतनुं बनेलुं होय! शास्त्रकार कहे छे के,
पुण्योदयने कारणे, आ संसारमां जे शुभ सुगंधित अने स्निग्ध परमाणुओ हता ते ज
परमाणुओथी तेमना उत्तम शरीरनी रचना थई हती; जीवतपर्यंत जेनो नाश न थाय
एवी उत्तम स्वर्गविभूति पण तेनी साथे ज उपजी हती. अनेक प्रकारनी उत्तम
ऋद्धिओथी सुशोभित एवा वैक्रियिक शरीरने धारण करनार ते अहमिन्द्र सर्वार्थसिद्धिमां
जिनेन्द्रदेवनी अकृत्रिम प्रतिमाओनुं पूजन करता हता अने पोताना क्षेत्रमां ज विहार
करता हता. मनोहर गंध, अक्षत वगेरे पदार्थो तेने ईच्छा करतांवेंत प्राप्त थता हता,
अने तेना वडे ते विधिपूर्वक पुण्यबंध करनारी एवी जिनपूजा करता हता. पुण्यात्मा
जीवोमां सौथी प्रधान एवा ते अहमिन्द्र ते सर्वार्थसिद्धिविमानमां ज स्थित रहीने
समस्त लोकमां रहेली जिनप्रतिमाओनी पूजा करता हता; ते पुण्यात्मा अहमिन्द्रे
पोताना वचननी प्रवृत्ति जिनदेवनी पूजास्तुति करवामां लगावी हती, मन भगवानने
नमस्कार करवामां जोडयुं हतुं, अने शरीर भगवानने नमस्कार करवामां लगाव्युं हतुं.
वगर बोलाव्ये पण