Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : १३ :
वज्रनाभिना ते आठे भाईओ (विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, बाहु,
सुबाहु, पीठ अने महापीठ), तेमज श्रीमतीनो जीव धनदेव,–ए नवे जीवो पण
पुण्यप्रभावथी वज्रनाभिनी साथे ज सर्वार्थसिद्धिमां अहमिन्द्र थया. सर्वार्थसिद्धिमां
ऊपजेला ते अहमिन्द्रो मोक्षसुख जेवा सुखनो अनुभव करता थका, विषयभोगो वगर
(प्रवीचार रहित) ज दीर्घकाळ सुधी प्रसन्न रहेता हता. ते अहमिन्द्रोने शुभकर्मना
उदयथी जे निर्बाध सुख थाय छे ते पूर्वोक्त प्रवीचारसहित विषयभोगोना सुखथी
अनंतगणुं होय छे.
प्रश्न:– संसारमां जीवोने स्त्री वगेरेना संयोगथी सुखनी प्राप्ति थाय छे, तो तेना
अभावमां सर्वार्थसिद्धिना अहमिन्द्रोने सुख कई रीते छे?
उत्तर:– सुख बाह्यविषयोमां नथी; भगवान जिनेन्द्रदेवे आकुळता रहित वृत्तिने
सुख कह्युं छे; तेथी, जेमनुं चित्त अनेक प्रकारना विषयोनी आकुळताथी व्याकुळ छे एवा
सरागी जीवोने ते सुख क्यांथी होय? जेम शरीरमां शिथिलता ने चित्तमां मोह उत्पन्न
करनार ज्वर (ताव) तो संतापरूप छे, ते सुखरूप नथी; तेम स्त्री–सेवनरूप कामज्वर
पण शरीरने शिथिल करनार ते चित्तमां मोह करनार छे, ते तो लालसा अने संताप
वधवानुं कारण छे, ते सुखरूप नथी. जेम कडवी दवानुं सेवन रोगी जीवो ज करे छे,
नीरोगी नहि, तेम विषयोरूपी कडवी औषधिनुं सेवन ईच्छारूपी रोगथी दुःखी
(आकुळ) जीवो ज करे छे, निराकूळ जीवोने विषयसेवन होतुं नथी. ज्यारे मनोहर
विषयोनुं सेवन मात्र तृष्णा वधारनार ज छे, संतोषनुं कारण नथी, तो पछी तृष्णारूपी
ज्वाळाथी संतप्त ते जीव सुखी केम होई शके? सुख तो आत्मामां छे, विषयोमां नहि;
आत्मा पोताना अनाकुळभावथी पोते ज्यां सुखरूप थयो, त्यां बाह्यविषयो वगर ज
तेने सुख छे. जेम,–जे औषधि रोगने दूर न करी शके ते खरी औषधि ज नथी, जे जळ
तरसने दूर न करी शके ते खरेखर जळ नथी, जे धन आपत्तिने दूर न करी शके ते
खरेखर धन नथी, तेम जे विषयसुखो तृष्णाने मटाडी न शके ते खरेखर सुख नथी,
एटले ईन्द्रियविषयोथी ऊपजेलुं सुख ते खरेखर सुख छे ज नहि. जेम स्वस्थ मनुष्यने
औषधिनुं सेवन होतुं नथी तेम ईच्छारहित संतोषी जीवने विषयोनुं सेवन होतुं नथी.
जेम स्वस्थ मनुष्य औषधिसेवन वगर ज सुखी रहे छे तेम कामेच्छारहित संतोषी
अहमिन्द्रो विषयसेवन वगर ज सुखी रहे छे. ए परम स्वास्थ्यरूप सुख विषयोमां
अनुरागीने होतुं नथी; केमके ते विषयो