Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : १प :
जो बहारनी सामग्रीथी सुख थाय छे–एम कोई कहे तो, तेनी सामे बे प्रश्नो
उपस्थित करवामां आवे छे:– जेनी पासे बाह्य सामग्री विद्यमान छे तेने शुं ते
सामग्रीना होवा मात्रथी ज सुख थाय छे? के तेनो उपभोग करवाथी? जो सामग्रीना
होवाथी ज सुख थतुं होय तो, जेने रोग थयो छे के वींछी करडयो छे एवा राजाने पण
ते वखते सुख होवुं जोईए, केमके स्त्री–धन वगेरे बधी सामग्री विद्यमान छे. (परंतु ते
सामग्री विद्यमान होवा छतां ते वखते राजा दुःखी जोवामां आवे छे, माटे सामग्री
सुखनुं कारण नथी.) अने सामग्रीना भोगवटामां पण कलेश, थाक ने आकुळता ज
होवाथी तेमां पण सुख नथी.–ए वात पहेलां कहेवाई गई छे.
अरे, आ विषयो तो स्वप्न समान अस्थायी छे; तेनाथी सुख कई रीते प्राप्त
थई शके? विचार करतां मालुम पडे छे के विषयसामग्री सुखनुं कारण नथी. ते सामग्री
मेळववामां दुःख, तेने भोगवती वखते दुःख, ने तेना वियोगथी पण दुःख, ए रीते
विषयाधीन प्राणी निरंतर दुःखी ज छे. जे विषयो स्वयं विनाशशील छे, जेना सेवन
वडे जीवना संसारनो नाश थतो नथी, अने जेनुं सेवन जीवना सन्तापने दूर करी शकतुं
नथी एवा ए विषयोने धिक्कार हो! जेम लाकडा वडे अग्नि कदी शांत थतो नथी ने
नदीओनां पूर वडे समुद्र कदी तृप्त थतो नथी, तेम विषयोना भोगवटाथी जीवनी तृष्णा
कदी दूर थती नथी. –ए रीते विषयो आकुळताना ज उत्पादक होवाथी दुःखरूप छे.
आत्मानुं स्वाधीनसुख ते विषयोने आधीन नथी–नथी. जेम खारूं पाणी पीवाथी
मनुष्यनी तरस छीपाती नथी पण ऊलटी बळतरा वधी जाय छे, तेम खारा पाणी जेवा
ईन्द्रियविषयोना भोगवटाथी पण जीवनी तृष्णा कदी छीपती नथी पण ऊलटी वधे छे.
अहो, जेनो आत्मा पांचईन्द्रियोना विषयोने आधीन थई रह्यो छे अने
विषयरूपी मांसनी तीव्र लालसा राखे छे ते विषयाधीन जीव अचिन्त्य दुःख–भारे दुःख
पामे छे. जेम वनमां विचरनारो हाथी स्पर्शना मोहथी दुःखी थाय छे, सरोवरमां केलि
करनारुं माछलुं मांसना रसना मोहथी दुःखी थाय छे, गूंजारव करनारो भमरो फूलनी
सुगंधना मोहथी दुःखी थाय छे, रंगीन पतंगियुं दीपकना प्रकाशना रूपमां मोहित थईने
भस्म थाय छे, अने जंगलमां चरनारा हरणीयां शिकारीना मधुर गीतना शब्दोमां
मोहित थईने मरे छे.–आ प्रमाणे एकेक ईन्द्रियना विषयोनुं सेवन पण ज्यां दुःखथी
भरेलुं छे, त्यां पांचेय ईन्द्रियना विषयोनुं तो शुं