: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : १७ :
आपणा चरित्रनायक भगवान ऋषभदेवना जीव वज्रनाभि–चक्रवर्तीने,
स्वर्गथी पण उपर एवा सर्वार्थसिद्धिमां सुकृतनां फळथी जे विषयरहित उदार सुख प्राप्त
थयुं, ते एवुं लागतुं हतुं के जाणे मोक्षनुं सुख ज तेनी सन्मुख आव्युं होय? आ
संसारमां जीवने जे सुख के दुःख थाय छे ते पोताना करेला पुण्य के पापरूप कर्मबंधने
अनुसार थाय छे. पुण्यनुं उत्कृष्ट फळ सर्वार्थसिद्धिमां होय छे, ने पापनुं उत्कृष्ट फळ
सातमी नरकना नारकीने होय छे. शांत परिणाम, ईन्द्रियदमन, संयम वगेरे वडे
पुण्यात्मा जीव उत्कृष्ट पुण्यफळने पामे छे, ने शम–दम–यमथी रहित पापीजीव पापनां
फळने पामे छे.
अधिकारना अंतमां श्री जिनसेनस्वामी कहे छे के–घणा ज नीकटकाळमां जेमने
तीर्थंकरपदरूपी जिनेन्द्रलक्ष्मी प्राप्त थवानी छे एवा आ वज्रनाभिए जेवी रीते शम–
दम–यमनी विशुद्धिपूर्वक आळसरहित थईने श्री जिनेन्द्रदेवनी कल्याणकारी आज्ञानुं
आराधन कर्युं अने महान सुख पाम्या, तेवी रीते जेओ अनुपम सुखना अभिलाषी
होय अने दुःखना भारथी छूटवा चाहता होय ते बुद्धिमान जीवोए पण आळसरहित
थईने श्री जिनेन्द्रदेवनी आज्ञानुं (दर्शनविशुद्धि वगेरेनुं) पालन करवुं जोईए.
(आगामी अंके अयोध्यानगरीमां ऋषभअवतार थशे.)
अष्टाह्निका पर्व वखते बे मित्रो वात करता हता–
एक कहे:– नंदीश्वरद्वीपे अति सुंदर रत्नप्रतिमाओ बिराजी रह्या छे, तीर्थंकर जेवी
तेमनी शोभा छे; एना साक्षात् दर्शन करवा आपणे जई शक्ता नथी, पण
देवो त्यां जईने साक्षात् दर्शन अने पूजन करी शके छे. देवोने केवुं सारूं के
नंदीश्वरद्वीपे पण जई शके!
बीजो मित्र कहे:– भाई, नंदीश्वरना रत्नप्रतिमाना दर्शननी अपेक्षाए तारी वात
साची; परंतु बीजी एक वात छे–देवो भले नंदीश्वर जई शके पण मोक्षमां
नथी जई शक्ता; ने आपणे मनुष्यो भले नंदीश्वर न जई शकीए पण
मोक्षमां जई शकीए छीए.–तो हवे कोण उत्तम?
देवो केवळज्ञान नथी पामता, मनुष्यो पामे छे.
देवो मुनि नथी थई शक्ता, मनुष्यो मुनि थई शके छे.