Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
[वांचकोना विचारने रजु करतो सौनो प्रिय विभाग]
प्र:– कोई प्रकारना शुभरागथी धर्मनी शरूआत थती नथी, ने वर्तमानमां तो
शुभभाव सिवाय बीजो भाव नथी, –तो क्या भावथी धर्मनी शरूआत थाय? (नं. १३८६)
उ:– शुभरागथी पार एवो ज्ञानभाव प्रगट करवाथी धर्मनी शरूआत थाय छे.
पहेलां भले ते भाव प्रगट न होय, पण सत्समागमे साचा प्रयत्नवडे ते भाव प्रगटी शके छे.
प्र:– समजण ओछी होय, तो सौथी पहेलां कयुं पुस्तक वांचवुं?
उ:– भाई, आपणा समाजमां अत्यारे प्राथमिक साहित्यनी जोके खेंच छे; छतां
जैन बाळपोथी, सिद्धांत प्रवेशिका, छहढाळा, द्रव्यसंग्रह, मोक्षमार्गप्रकाशक, मुक्तिनो
मार्ग, मोक्षमार्ग प्रकाशननां किरणो, रत्नसंग्रह तेमज गुरुदेवना प्रवचनोनुं वांचन
प्राथमिक जिज्ञासुने उपयोगी थाय तेवुं छे. ने साक्षात् सत्संगमां रहीने अभ्यास
करवाथी तत्त्व समजवुं सुगम पडे छे.
प्र:– आत्माना विचार करवाथी आत्मा प्राप्त थाय छे? (NO. 346-347)
उ:– आत्माना साचा विचार त्यारे ज थई शके के ज्यारे सत्समागमे तेनुं साचुं
स्वरूप जाण्युं होय. स्वरूप जाणीने तेना विचार करतां ते जरूर प्राप्त थाय छे. श्रीमद्
राजचंद्रजी कहे छे के–“कर विचार तो पाम.”
प्र:– आत्मा शुं छे ने क्यां छे? (NO. 68)
आत्मा ज्ञानस्वरूप वस्तु छे; जे बधी वस्तुनो जाणनार छे ते ज आत्मा छे, ने
ते पोताना ज्ञानादि गुणोमां रहेलो छे. आ देहमां रहेला (पण देहना स्वरूपथी भिन्न)
आपणे सौ आत्मा छीए.
प्र:– आत्माना विचार करवा ते तो शुभराग छे, अने शुभराग करतां करतां
शुद्धभाव कदी थाय नहि, तोपछी अमारे शुं करवुं ? (सभ्य नं. 470)
उ: ज्ञानी पासेथी आत्मानुं खरूं स्वरूप लक्षगत कर्या पछी जिज्ञासु जीव तेना जे
विचार करे छे ते ‘विचार’ मां एकलो शुभराग ज नथी परंतु ज्ञानभावनुं घोलन पण
भेगुं ज चाले छे; ने ते ज्ञानभावना घोलनना बळे