: २२ : आत्मधर्म : मागशर : २४९३
विकल्प तोडीने ते स्वानुभव करे छे. आ रीते आत्मस्वरूपना साचा विचारमां एकलो
राग नथी पण ज्ञाननुं कार्य पण भेगुं छे–ए वात जिज्ञासुओए खास लक्षमां लेवा
जेवी छे. तेथी ज श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के ‘कर विचार तो पाम!’
‘जन्मदिवसनुं कार्ड अने गुरुदेवनो फोटो जोतां जाणे जन्म–मरण टाळवानो
वखत आवी गयो होय एम लागे छे. मारी बा दररोज मने समजावे छे के आत्मानी
समजण करीए तो भवनो नाश थई जाय.’ (पंकज जैन) भाई! भारतनी बधी
माताओ पोताना सन्तानोने आत्मबोध सहित धर्मसंस्कार आपे ने जैनधर्मना
महापुरुषोनी जीवनकथा संभळावीने तेना जीवनमां उत्तम आदर्श पूरा पाडे–एम ईच्छीए.
प्र:– धार्मिक वांचन करता होईए ते वखते तो संसार दुःखमय लागे छे, पण
संसारप्रवृत्ति वखते पाछुं ते केम भूलाई जाय छे? (स. नं. ९)
उ:– वांचन वखते संसार दुःखमय लागे छे ते तो शास्त्रमां कह्युं छे तेथी दुःखमय
लागे छे एटले शास्त्र तरफना वलणथी जागेली ए वृत्ति टकती नथी, ने संसारप्रवृत्ति
वखते ते भूलाई जाय छे. पण परमशांतिनुं धाम एवो आत्मा तेनी सन्मुख थईने जो
संसार दुःखमय लागे, तो आत्मामांथी जागेली ते वृत्ति कोई प्रसंगमां छूटे नहि, ने
तेनी परिणति दुःखथी पाछी वळीने आत्मा तरफ वळ्या वगर रहे नहि. ज्ञानीओने
भेदज्ञानना बळे पोतानी परिणतिमां ज राग वगरनी शांतिनुं परिणमन थई गयुं छे,
ते शांति संसारना कोई प्रसंगमां तेमने छूटती नथी. पर तरफ जोईने संसार दुःखमय
लाग्यो ते खरेखर दुःखमय लाग्यो ज नथी, खरेखर जो परभावरूप संसार दुःखमय
लागे तो जीव तेनाथी पाछो केम न वळे? ने सुखना समुद्रमां ते केम न आवे?
“भरवाडमांथी भगवान”–ते वांचीने तमनेय एवा थवानुं मन थयुं;–तो साचा
आत्मप्रयत्नवडे आपणे पण जरूर तेवा थई शकीए. महापुरुषोना जीवननां द्रष्टांत
शास्त्रोमां एटला माटे ज आप्यां छे के आपणने य तेमना जेवा थवानी प्रेरणा जागे.
प्र:– मोक्ष जवुं सारूं के स्वर्ग जवुं सारूं? (NO. 1588)
उ:– स्वर्ग ए शुभ–रागनुं फळ छे, ने मोक्षए वीतरागतानुं फळ छे. हवे तमे ज
कहो जोईए–तमने बेमांथी कयुं गमे?
प्र:– संसार तो सुख–दुःखथी भरेलो छे; तेमां कया स्थळे जईए तो जीवने
शान्ति थाय ने धर्ममां आगळ वधाय?
उ:– आत्मस्वभावरूप जे स्वतंत्र स्वदेश तेमां आवतां शांति थाय ने धर्ममां आगळ