Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
वधाय; बाकी संसार तो परभाव छे, परतंत्र छे; ए परभावरूपी परदेशमां तो सुख
क्यांथी होय? तेथी तो–
मने लागे संसार असार...
ए रे संसारमां नहीं जाउं...
नही जाउं...नहीं जाउं रे...
सभ्य नं. 43 लखे छे–“बालविभागना बाळ–फूलडांनी संख्या वधती जोई घणो
आनंद थाय छे. आपणा बाल–परिवारना बधा सभ्यो आत्मकल्याण करी, जिनवरना
संतान बनी, आपणा पूर्वजो (–सिद्धभगवंतो) जेवा थाय एवी भावना करुं छुं.” (–
आपनी लागणी अने शुभेच्छा माटे आभार!)
मोरबीथी सभ्य नं. १३०७ पूछे छे–आखा भारतदेशमां जैनधर्मना अंदाजे
केटला जिनमंदिरो छे? अने तेमां पण पांचे बालब्रह्मचारी भगवंतो बिराजता होय
एवुं जिनमंदिर क्यां क्यां छे?
उ:– भाईश्री! तमारो प्रश्न वांचीने एम थयुं के भारतना सात लाख गाममां
जईने जेटला जिनमंदिरो छे तेनां दर्शन करी आवुं ने ते दरेकमां क्या क्या भगवान
बिराजे छे ते नक्की करतो आवुं. पछी जवाब लखुं! –पण एम करतां तो रोजना सो–
सो गाममां फरुं तोय वीस वर्ष लागी जाय! एटले नकशा उपरथी तेम ज गुरुदेव साथे
भारतना मोटा भागनी यात्रा करी छे ते उपरथी अनुमान करी लखुं छुं के भारतमां
एक लाख जेटला जिनमंदिरो हशे. जैनोनी कुल वस्ती एक करोड जेटली हशे. पांच
बालब्रह्मचारी भगवंतो एक तो आपणा (तमारा ने मारा) गाममां ज बिराजे छे.
बीजा आरा (बिहार) ना मंदिरमां पण पांच बालब्रह्मचारी भगवंतोनी प्रतिमा
बिराजे छे. ते सिवाय जयपुर, सम्मेदशिखरजी, मुडबिद्रि, कारकल, श्रवणबेलगोला,
वगेरे केटलाय ठेकाणे जिनमंदिरोमां पांच बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकरोनी प्रतिमा छे–केमके
‘चोवीसी’ मां तो ते पांच पण आवी जाय ने! बीजे पण केटलेय ठेकाणे बिराजमान
हशे; ते सर्वने नमस्कार हो. –“ ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी त्यां त्यां करुं प्रणाम.”
प्र:– ‘वीतरागी’ ने ‘हितोपदेशी’ तेमां शुं तफावत? (नं. १४०२)
उ:– सर्वज्ञ अर्हंतदेव वीतरागी ने हितोपदेशी छे; तेमां वीतरागता तो आत्मानो
पोतानो (आत्मभूत) भाव छे; ने हितोपदेशरूप वचन ते आत्माथी भिन्न
(अनात्मभूत) छे.
प्र:– अनेकान्तस्वरूपनी श्रद्धा केवी रीते थाय छे?
उ:– ज्ञानस्वरूप आत्माना अनुभववडे अनेकान्तस्वरूपनी श्रद्धा थाय छे.