Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९३
भरवाडमांथी भगवान
[३]
[भरवाडना भवमां भक्तिपूर्वक मुनिराजने शास्त्रदान आपीने ते आत्मा
कुंदकुंद–कुमार तरीके अवतर्या,. ११ वर्षे दीक्षा लीधी...ज्ञायकभावनी आराधना
करीने ज्ञानध्यानमां लीन रहेवा लाग्या. अहीं भरतक्षेत्रमां सर्वज्ञ भगवानना
विरहमां विदेहक्षेत्रना सीमंधर भगवाननुं चिंतन कर्युं...ने तेमना साक्षात् दर्शन
माटे आकाशमार्गे विदेहक्षेत्र तरफ जई रह्या छे. –आटली वात अगाउ आवी
गई छे.
]
अहा! ए कुंदकुंद मुनिराज, भगवानने भेटवा आकाश मार्गे जई रह्या छे. केवुं
हशे ए द्रश्य!! ने केवा हशे ए मुनिराजना अंतरना भावो!! केवळज्ञानना
साधकमुनिराज केवळज्ञानने साक्षात् नीहाळवा जाय छे...भरतक्षेत्रना तीर्थपति
विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरनी वाणी सांभळवा जाय छे. दक्षिणदेशमांथी पूर्वविदेह तरफ जतां
जतां वच्चे सम्मेदशिखर–तीर्थ पण रस्तामां आव्युं हशे...तेने वंदन करतां करतां
ऋद्धिबळे पर्वत ओळंगीने आगळ चाल्या हशे ने थोडी वारमां शाश्वत तीर्थ मेरुने
देखीने भक्तिभावथी वंदन कर्या हशे...रत्नमय शाश्वत जिनबिंबोनी वीतरागता देखी
देखीने वीतरागभावनी उर्मिओ एमने जागी हशे...ने थोडी ज वारमां विदेहभूमिमां
प्रवेश कर्यो. अहा, विदेहक्षेत्रमां समवसरण वच्चे सीमंधर–परमात्माने नजरे नीहाळतां
एमना आत्मामां कोई अचिंत्य विशुद्धिओ प्रगटी...ए ज्ञायकबिंबने देखीने एक वार
तो तत्क्षण पोते पण ज्ञायकबिंबमां ठरी गया. परम विनयथी हाथ जोडीने प्रभुने कोई
अपूर्वभावे नमस्कार कर्या, दिव्यध्वनिनुं श्रवण कर्युं. अहा! ए शंभुस्वामी वगेरे
गणधरभगवंतो ने ए चैतन्यलीन मुनिवरोनी सभा! ...ए ईन्द्र अने पद्मचक्रवर्तीद्वारा
प्रभुचरणनी सेवा...ने धर्मनो अद्भुत वैभव! धर्मनी आराधनाना केवा आनंदकारी
द्रश्यो! विदेहनां ए द्रश्यो देखीने एमनो आत्मा तृप्त थयो (दिव्यध्वनिमांथी हृदय
भरीभरीने शुद्धात्मानुं अमृत पीधुं–