Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : २प :
प्रत्यक्ष जिनवरदर्शने बहु हर्ष एलाचार्यने;
कार सूणतां निजतणो अमृत मळ्‌युं मुनिहृदयने.









भरतना मुनिए विदेहक्षेत्रना भगवानने नीहाळ्‌या. तेओ विदेहक्षेत्रमां आठ
दिवस रह्या..आठ दिवस सुधी सीमंधर भगवानना चरणोमां दिव्यध्वनिरूपी अमृत
पीधुं...खूब खूब पीधुं. त्यांनां मुनिओ साथे तेओए केवी चर्चा करी हशे!! गणधरो ने
श्रुतकेवळी भगवंतोना चरणनी केवा भावथी उपासना करी हशे! अहो! भरतना अने
विदेहना मुनिवरोना मधुरमिलननां ए द्रश्यो केवा हशे!! –ए प्रसंग जोनारा जीवो पण
केवा भाग्यशाळी! भरतक्षेत्रना आ प्रतिनिधिने देखीने विदेहनां मानवीओ पण
आनंदित थया ने घणी भक्तिथी एमनुं बहुमान कर्युं. आपणा कहानगुरु वगेरेना
आत्माओ पण ते वखते त्यां (राजकुमार अने तेमना मित्रो) हता; ने तेओए पण
परम भक्तिथी कुंदकुंद मुनिराजनुं बहुमान कर्युं हतुं.
विदेहना मोटा मानवीओ पासे भरतना मानवी तो साव नाना लागे; एटले
विदेहना मानवीओ तेमने ‘नानकडा आचार्य’ (एटले के एल–आचार्य, एलाचार्य)
एवा हुलामणा नामे ओळखता. विदेहना मुनिओ पासे तेमनुं शरीर भले नानुं पण
एमनी दशा तो विदेहना मुनिओ जेवी ज! जेवा विदेहना मुनि तेवा ज आपणा
भरतना आ मुनि. विदेहना मुनिओए भरतना आ मुनिराज प्रत्ये केवुं वात्सल्य
बताव्युं हशे!