“ कार सूणतां निजतणो अमृत मळ्युं मुनिहृदयने.
भरतना मुनिए विदेहक्षेत्रना भगवानने नीहाळ्या. तेओ विदेहक्षेत्रमां आठ
पीधुं...खूब खूब पीधुं. त्यांनां मुनिओ साथे तेओए केवी चर्चा करी हशे!! गणधरो ने
श्रुतकेवळी भगवंतोना चरणनी केवा भावथी उपासना करी हशे! अहो! भरतना अने
विदेहना मुनिवरोना मधुरमिलननां ए द्रश्यो केवा हशे!! –ए प्रसंग जोनारा जीवो पण
केवा भाग्यशाळी! भरतक्षेत्रना आ प्रतिनिधिने देखीने विदेहनां मानवीओ पण
आनंदित थया ने घणी भक्तिथी एमनुं बहुमान कर्युं. आपणा कहानगुरु वगेरेना
आत्माओ पण ते वखते त्यां (राजकुमार अने तेमना मित्रो) हता; ने तेओए पण
परम भक्तिथी कुंदकुंद मुनिराजनुं बहुमान कर्युं हतुं.
एवा हुलामणा नामे ओळखता. विदेहना मुनिओ पासे तेमनुं शरीर भले नानुं पण
एमनी दशा तो विदेहना मुनिओ जेवी ज! जेवा विदेहना मुनि तेवा ज आपणा
भरतना आ मुनि. विदेहना मुनिओए भरतना आ मुनिराज प्रत्ये केवुं वात्सल्य
बताव्युं हशे!