रमणता करवानी धून जागी छे. मुनि थईश ने आत्माने साधीने केवळज्ञान पामीश.–
माटे आनंदथी रजा आप!
पामीश. जे तारो मार्ग छे ते ज मार्गे अमारे पण आव्ये छूटको छे.
हुं जाते देहनुं ममत्व छोडी, स्मशानमां जीवतो जईने मारा चैतन्यहंसलाने साधुं. आ
देहनी तो आजे आंख ने काले राख! एवा बनावो नजरे देखाय छे. अरे, आवा
अवसरे आत्माने नहि साध तो हे जीव! क्यारे आत्माने साधीश?
प्रगट अनुभव आपणो, निर्मळ करो सप्रेम...रे...
करीने अनंतगुणना धामने तारामां देख. अरे, जे चैतन्यनी वार्ता सांभळतां पण हर्ष
ऊछळे, तेना साक्षात् अनुभवना आनंदनी तो शी वात!!
उघाडनी होंश करवा जेवी नथी. जेमां चैतन्यना उपयोगनी जागृति हणाय ते भावमरण
छे. एक देह छोडीने बीजा देहमां जतां वच्चे जीवने उपयोगनी जागृति रहेती नथी तेथी
खरेखर तेने मरण कह्युं छे. रस्तामां जीवना उपयोगनी जे संख्या गणावी छे ते तो ते
प्रकारना उघाडनी शक्ति छे ते अपेक्षाए कह्युं छे, पण त्यां लब्धरूप उघाड छे,
उपयोगरूप नथी. त्यां उपयोगनो अभाव थई जाय छे तेथी मरण कह्युं.