Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : ३ :
उदास लागे छे. आ प्रवृत्तिना परिणामोथी हवे हुं थाक्यो छुं. हवे तो आनंदस्वरूपमां
रमणता करवानी धून जागी छे. मुनि थईश ने आत्माने साधीने केवळज्ञान पामीश.–
माटे आनंदथी रजा आप!
त्यारे माता पण पछी तो आनंदथी रजा आपे छे के बेटा, जहा सुखं–तारा
सुखना मार्गनी आडे हुं नहि आवुं! तने सुख उपजे तेम कर...क्यांय प्रतिबद्ध न
पामीश. जे तारो मार्ग छे ते ज मार्गे अमारे पण आव्ये छूटको छे.
पछी ते राजकुमार मुनि थई स्मशान वगेरेमां एकलो जईने आत्मानुं ध्यान
करे! मरण थतां आ शरीरने बीजा लोको उपाडीने स्मशानमां लई जाय छे, तेने बदले
हुं जाते देहनुं ममत्व छोडी, स्मशानमां जीवतो जईने मारा चैतन्यहंसलाने साधुं. आ
देहनी तो आजे आंख ने काले राख! एवा बनावो नजरे देखाय छे. अरे, आवा
अवसरे आत्माने नहि साध तो हे जीव! क्यारे आत्माने साधीश?
आ देह तो जड छे; तारा अनंत गुणो तो तारा चैतन्यधाममां भर्या छे–
ज्यां चेतन त्यां अनंत गुण, केवळी बोले एम;
प्रगट अनुभव आपणो, निर्मळ करो सप्रेम...रे...
चैतन्यप्रभु! प्रभुता तमारी चैतन्यधाममां...
भगवान केवळीप्रभुए दिव्यध्वनिमां एम कह्युं छे के हे जीव! तारा चेतनधाममां
तारा अनंत गुणो भर्या छे; तेनो निर्मळ प्रेम तुं प्रगट कर...तारा परिणामने अंतर्मुख
करीने अनंतगुणना धामने तारामां देख. अरे, जे चैतन्यनी वार्ता सांभळतां पण हर्ष
ऊछळे, तेना साक्षात् अनुभवना आनंदनी तो शी वात!!
भाई, करवा जेवुं होय तो आवा आत्माना अनुभवनुं कार्य ज करवा जेवुं छे;
एनी ज होंश ने उत्साह करवा जेवुं छे. बाकी बहारना बीजा कार्योनी के ईन्द्रिय संबंधी
उघाडनी होंश करवा जेवी नथी. जेमां चैतन्यना उपयोगनी जागृति हणाय ते भावमरण
छे. एक देह छोडीने बीजा देहमां जतां वच्चे जीवने उपयोगनी जागृति रहेती नथी तेथी
खरेखर तेने मरण कह्युं छे. रस्तामां जीवना उपयोगनी जे संख्या गणावी छे ते तो ते
प्रकारना उघाडनी शक्ति छे ते अपेक्षाए कह्युं छे, पण त्यां लब्धरूप उघाड छे,
उपयोगरूप नथी. त्यां उपयोगनो अभाव थई जाय छे तेथी मरण कह्युं.