Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९३
छे, ने तेने ज सर्वज्ञनी खरी श्रद्धा छे; जे जीव आवा आत्माने जाणतो नथी ते सर्वज्ञने
पण जाणतो नथी.
भगवान सर्वज्ञदेव समस्त लोकना प्रकाशक छे, विश्वने साक्षात् जाणनारा छे, ने
वीतराग छे. आवा निर्दोष सर्वज्ञ भगवाने तो आ ज्ञानसूर्यने चैतन्य–किरणोवाळो
देख्यो छे; रागनो अंधकार तेनामां नथी. आत्माना स्वानुभवमां ते भावो प्रवेशता
नथी. आत्मानो स्वभाव नथी माटे तेने पुद्गलनो स्वभाव कह्यो. आत्माना
स्वभावमां तन्मय थनार जीवने ते विकारी भावो पोतामां बिलकुल अनुभवाता नथी,
पण स्वभावथी ते भिन्न ज रहे छे. –जीवनो परमार्थ स्वभाव तो आवो धर्मी जीव
जाणे छे. छतां जेओ रागादि कलुषभावोने आत्मा माने छे तेओ परमार्थजीवने जाणता
नथी, व्यवहारजीव ते खरो जीव नथी; परमार्थजीव एटले शुद्धचेतनस्वभावी जीव ते ज
खरो जीव छे, ने तेना ज अनुभव वडे सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
चैतन्यभावथी विरुद्ध एवा जे अन्य रागादिभावो तेने भगवान सर्वज्ञदेवे
जीवस्वभाव तरीके जोया नथी, सर्वज्ञना आगममां तेने जीवस्वभाव कह्या नथी, ने
ज्ञानीना अनुभवमां तेओ जीव तरीके अनुभवाता नथी.
ते रागादि परभावोने सर्वज्ञदेवे जीवस्वभावथी जुदा जाण्या छे, सर्वज्ञना
आगममां तेने जीवस्वभावथी जुदा कह्या छे ने ज्ञानीने जीवस्वभावनो जे अनुभव छे
तेनाथी पण ते भिन्न ज छे.
अहीं तो कहे छे के चेतनथी अन्य एवा रागादिभावोने जेओ जीवस्वभाव कहे
छे तेओ सत्यार्थवादी ज नथी, साचुं स्वरूप तेओ जाणनारा नथी. त्रण जगतने
जाणनारा एवा परम सत्यवादी सर्वज्ञदेवे जीवने चेतनस्वभावमय कह्यो छे.
चेतनभावने अने रागभावने एकमेक कहे ते वचन सत्य नहि, ते वचन सर्वज्ञनुं नहि.
जुओ, आ सर्वज्ञना वचनने ओळखवानी रीत! जीवना चेतनभावने, अने
रागादि अचेतनभावने, बंनेने भिन्नभिन्न ओळखावे ते सर्वज्ञनुं वचन छे, ने एवुं
ओळखे ते सर्वज्ञने ओळखे छे. पण रागादि अन्यभावोना अंशमात्रने चेतनभावमां
जे भेळवे, अथवा ते रागादिभावोथी चेतनने अंशमात्र लाभ माने तो तेने सर्वज्ञना
वचननी पण खबर नथी ने सर्वज्ञने पण ते ओळखतो नथी.
मति–श्रुतज्ञान अंतर्मुख थईने आत्मानुं जे स्वसंवेदन करे छे तेमां रागनी
अपेक्षा नथी; स्वसंवेदन ज्ञानवडे पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे–एवी आत्मानी ताकात
छे. पोते पोताने स्पष्ट प्रकाशे एवी प्रकाशशक्ति आत्मामां छे एटले ते पोते पोताने