: पोष : २४९३ आत्मधर्म : ९ :
परम शांति दातारी
अध्यात्म भावना
(लेखांक ४प)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
देह अने आत्माने भिन्न नहि जाणनारो अज्ञानी देहमां आत्मबुद्धिने लीधे
मरणथी भयभीत रहे छे ने असमाधिपणे मरे छे. ज्ञानी तो देहने पोताथी अत्यंत भिन्न
जाणे छे तेथी तेने मृत्युनो भय नथी, तेने तो मरण टाणेय समाधि ज छे. –एम अज्ञानी
तथा ज्ञानीना भिन्न भिन्न परिणामनी वात करी.
हवे ७८ मी गाथामां ज्ञानी अने अज्ञानी वच्चे मूळभूत तफावत बतावतां सरस
वात करे छे के–जे जीव व्यवहारमां अनादरवान छे एटले के व्यवहारनो–रागादिनो आदर
करतो नथी ते ज आत्मबोधने पामे छे, अने जे जीव व्यवहारमां आसक्त छे–तेनो आदर
करे छे ते जीव आत्मबोधने पामतो नथी.–
व्यवहारे सुषुप्तो यः स जागर्त्यात्मगोचरे।
जागर्ति व्यवहारेऽस्मिन् सुषुप्ताश्चात्मगोचरे
जे जीवो व्यवहारमां सूतेला छे एटले के व्यवहारनो आदर करता नथी तेओ
आत्माना उद्यममां जागृत छे. अने जेओ व्यवहारमां जागृत छे–तेनो ज आदर करे छे ते
आत्माना उद्यममां ऊंघे छे एटले के आत्माना प्रयत्नमां ते तत्पर नथी.
मोक्षप्राभृतनी ३१मी गाथामां पण कुंदकुंदाचार्यदेवे आ वात करी छे. ज्ञानीने राग
तो होय–पण ते रागमां ते तत्पर नथी, तत्परता तो ज्ञानस्वभावमां ज छे. जेने रागमां
तत्परता छे–रागथी लाभ माने छे ते जीवो आत्मस्वभावना प्रयत्नमां अनुद्यमी छे.
अज्ञानीओ कहे छे के व्यवहार करतां करतां परमार्थ पमाशे...अहीं संतो स्पष्ट कहे छे के
जेओ व्यवहारमां जागृत छे–तत्पर छे तेओ परमार्थमां ऊंघता छे, एटले के तेओ
परमार्थने पामता नथी.
व्यवहारना विकल्पवडे–रागवडे परमाथर्