जाण्या ज नथी. जेम शरीर अने आत्मा बंनेने जाणवा छतां धर्मात्मा जड शरीरने
पोताथी भिन्न बाह्यपणे ज देखे छे, ने आत्माने ज अंतरमां देखे छे; तेम रागादि
व्यवहारने अने आत्माना शुद्धस्वभावरूप निश्चयने ए बंनेने जाणवा छतां धर्मात्मा
रागादि व्यवहारने तो पोताथी बाह्यपणे देखे छे, ने शुद्धस्वभावने ज पोताना
अंर्ततत्त्वपणे देखे छे. राग ते बाह्यतत्त्व होवा छतां तेने अंतरना स्वभाव साथे एकपणे
जे देखे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के आत्माने तो अंतरंगपणे देखवो ने
रागादिने बहिरंगपणे देखवा–आवा भेदविज्ञानना अभ्यास द्वारा जीव अच्युत थाय छे
एटले के अविनाशी मोक्षपदने पामे छे.
व्यवहारनी मदद वडे कोई जीव कदी मुक्ति पामतो नथी, ज्ञानानंद स्वभावनी द्रष्टिथी ज
मुक्ति पामे छे.
थांभला छे, तेमणे मोक्षमार्गने टकावी राख्यो छे; पोते स्वभावनी ने रागनी भिन्नता
अनुभवीने जगतने पण तेवी भिन्नता देखाडी छे.
खरेखर पोताना स्वभावथी बाह्य होवा छतां तेने ते अंतरंग तरीके देखे छे, तेनाथी लाभ
माने छे, एटले ते रागथी छूटो पडतो नथी,–मुक्ति पामतो नथी. रागथी भिन्नता जाणे
तो तेनाथी छूटो पडे. धर्मी गृहस्थपणामां होय ने रागादि थता होय छतां ते वखतेय ते
रागादिने बाह्य तत्त्वपणे ज देखे छे, ने ते रागादिथी भिन्न चैतन्यतत्त्वने ज अंतरंग
तत्त्वपणे देखे छे.
अंतरंग तत्त्वपणे जाणता हता.