करे छे. रामचंद्रजीना हृदयमां तो विश्चास हतो के सीताजी महापतिव्रता सती छे...पण
लोकोनो अपवाद टाळवा खातर अग्निपरीक्षा करी. मोटो अग्निकुंड कराव्यो, तेमां
भळभळ करतो अग्नि सळगतो हतो. सीताजी अग्नि पासे ऊभा ऊभा महावैराग्यथी
पंचपरमेष्ठीनुं स्मरण करता हता...लोको चिंताथी भयभीत थई गया के अरे! आ
अग्नि सीताना देहने भस्म करी नांखशे के शुं? सीताजी तो अत्यंत वैराग्यपूर्वक
सिद्धभगवान वगेरे पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करीने अग्निमां कूदी पड्या...लोकोमां तो
हाहाकार अने कोलाहल थई गयो...
हता...तेमणे धर्मात्मा उपर संकट देखीने तरत मूसळधार वरसाद वरसावीने अग्नि
ओलवी नांख्यो...चारे कोर पाणी...पाणी ने पाणी! पाणी वच्चे सिंहासन–कमळ उपर
सीताजी बिराजे छे...लोकोने गळा सुधी पाणी आवी गयुं...ने डुबवा लाग्या, एटले ‘हे
माता! बचावो...बचावो’ एवो पोकार करवा लाग्या...पछी तो उपसर्गनुं निवारण
करीने देवो सीताजीनी प्रशंसा करे छे. बधा लोको क्षमा मांगे छे–हे माता! अमारा
अपराध क्षमा करो...रामचंद्रजी पण कहे छे के हे देवी! मारो अपराध क्षमा करो...ने
राजमां पाछा पधारो...पण सीताजी तो आ प्रसंगथी वैराग्य