Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९३ आत्मधर्म : १९ :
* १६ स्वप्ननुं फळ *
१ गज देखनसे देवी तेरे पुत्र उत्तम होयगा,
२ वर वृषभका हें फल यही वह जगतगुरु भी होयगा.
३ वर सिंहदर्शनसे अपूरव शक्तिधारी होयगा,
४ पुष्पमालासे वह उत्तम तीर्थकर्ता होयगा.
प कमलान्हवनका फल यही सुरगिरिन्हवन सुरपति करें,
६ अर पूर्णशशिके देखनेसे जगतजन सब सुख भरें.
७ वर सूर्यसे वह हो प्रतापी, (८) कुंभ–युगसे निधिपति,
९ सर देखनसे सुभग लक्षणधार होवे जिनपति.
१० युगमीन खेलत देखनसे हे प्रिये चित्त धर सुनो,
होवे महा आनंदमय वह पुत्र अनुपम गुण सुनो.
११ सागर नीरखते जगतका गुरु सर्वज्ञानी होयगा,
१२ वर सिंह–आसन देखनेसे राज्यस्वामी होयगा.
१३ अरु सुरविमान सुफल यही वह स्वर्गसे चय होयगा,
१४ नागेन्द्रभवन विलाससे वह अवधिज्ञानी होयगा.
१प बहु रत्नराशि दिखावसे वह गुण खजाना होयगा,
१६ वर धूमरहित जु अग्निसे वह कर्मध्वंसक होयगा.
वर वृषभ मुखप्रवेशफल श्री वृषभ तुझ वपु अवतरे,
* हे देवी! तुं पुण्यातमा आनंदमंगल नित भरे.
नाभिराजाना श्रीमुखथी आवुं स्वप्नफळ सांभळीने मरूदेवीने घणो हर्ष थयो.
आ रीते, आ चोवीसीना त्रीजा आरामां (सुखम–दुःखमकाळमां) ज्यारे चोराशीलाख
पूर्व त्रण वर्षे आठ मास ने एक पक्ष बाकी हता त्यारे, जेठ वद बीजना शुभ दिवसे,
उत्तराषाढनक्षत्रमां, वज्रनाभि–अहमीन्द्रनुं देवलोकनुं आयुष्यपूर्ण थतां सर्वार्थसिद्धि–
विमानमांथी च्यवीने ऋषभतीर्थंकर मरुदेवीमाताना गर्भमां अवतर्या.
भगवाननुं गर्भावतरण थतां ज ईन्द्रलोकमां घंटनाद वगेरे अनेक मंगलचिह्नो
प्रगट्या; ते उपरथी भगवानना गर्भकल्याणकनो प्रसंग जाणीने ईन्द्रादि देवो त्यां
आव्या, ने अयोध्यानगरीने प्रदक्षिणा दईने, भगवानना माता–पिताने नमस्कार कर्या.
स्वर्गथी उत्सव करवा एटला बधा देवो आव्या के नाभिराजानो महेल खीचोखीच