२ वर वृषभका हें फल यही वह जगतगुरु भी होयगा.
३ वर सिंहदर्शनसे अपूरव शक्तिधारी होयगा,
४ पुष्पमालासे वह उत्तम तीर्थकर्ता होयगा.
प कमलान्हवनका फल यही सुरगिरिन्हवन सुरपति करें,
६ अर पूर्णशशिके देखनेसे जगतजन सब सुख भरें.
९ सर देखनसे सुभग लक्षणधार होवे जिनपति.
१० युगमीन खेलत देखनसे हे प्रिये चित्त धर सुनो,
होवे महा आनंदमय वह पुत्र अनुपम गुण सुनो.
११ सागर नीरखते जगतका गुरु सर्वज्ञानी होयगा,
१२ वर सिंह–आसन देखनेसे राज्यस्वामी होयगा.
१३ अरु सुरविमान सुफल यही वह स्वर्गसे चय होयगा,
१४ नागेन्द्रभवन विलाससे वह अवधिज्ञानी होयगा.
१प बहु रत्नराशि दिखावसे वह गुण खजाना होयगा,
वर वृषभ मुखप्रवेशफल श्री वृषभ तुझ वपु अवतरे,
* हे देवी! तुं पुण्यातमा आनंदमंगल नित भरे.
पूर्व त्रण वर्षे आठ मास ने एक पक्ष बाकी हता त्यारे, जेठ वद बीजना शुभ दिवसे,
उत्तराषाढनक्षत्रमां, वज्रनाभि–अहमीन्द्रनुं देवलोकनुं आयुष्यपूर्ण थतां सर्वार्थसिद्धि–
विमानमांथी च्यवीने ऋषभतीर्थंकर मरुदेवीमाताना गर्भमां अवतर्या.
आव्या, ने अयोध्यानगरीने प्रदक्षिणा दईने, भगवानना माता–पिताने नमस्कार कर्या.
स्वर्गथी उत्सव करवा एटला बधा देवो आव्या के नाभिराजानो महेल खीचोखीच