: पोष : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
सिद्धि केवा उपायथी थाय? ते कहे छे. पोतानुं जेवुं शुद्ध चेतनास्वरूप छे ते स्वरूपना
सम्यक् निर्णयवडे विपरीत मान्यताने नष्ट करवी ने निजस्वरूपमां अचलितपणे स्थिर
रहेवुं–आवुं जे स्वसंवेदनज्ञानपरिणमन ते उपाय छे, –ते मोक्षमार्ग छे; तेना वडे ज
आत्मानुं प्रयोजन साधी शकाय छे.
जुओ, आ आत्मानुं प्रयोजन अने तेनी सिद्धिनो उपाय, –बंने बताव्या. प्रथम
तो पोताना स्वरूपनी शुद्धता ते ज प्रयोजन छे, ए सिवाय रागादिने जे प्रयोजन माने,
पुण्यने के बहारना संयोगने जे ईच्छे, तेने तो पोताना साचा प्रयोजननी ज खबर
नथी, तो तेने साधे कई रीते?
अने, आत्मानी शुद्धतारूप जे प्रयोजन, तेनी प्राप्तिनो उपाय पोताना स्वरूपना
श्रद्धा–ज्ञान–लीनता ज छे, ते पण राग वगरना छे; जे रागने उपाय माने तेणे साचा
उपायने जाण्यो नथी. भाई, तुं कोण? तारुं प्रयोजन शुं? ने तेनी सिद्धिनो उपाय शुं?
–ते जाण.
* तुं कोण? के चेतनास्वरूप जीव. –पोताना अनंत गुणपर्यायो सहित, ने उत्पाद–
व्यय–ध्रुवता सहित–आवो चैतन्यस्वरूप जीव तुं छो.
* तारुं प्रयोजन शुं? पोते पोताना चैतन्यस्वरूपमां लीन थईने, सर्व
विभावरहित संपूर्ण शुद्धतारूपे परिणमे–एटले पूरुं सुख प्रगटे, ते ज
आत्मानुं प्रयोजन छे.
* तेनी सिद्धिनो उपाय शुं? –के परथी भिन्न, ने सर्व विभावरहित, पोतानुं जेवुं
शुद्ध चेतनास्वरूप छे–तेवुं सम्यक्पणे ओळखीने, श्रद्धा–ज्ञान करीने, ते
निजस्वरूपमां निष्कंपपणे लीन थवुं –ते प्रयोजननी सिद्धिनो उपाय छे.
आ रीते ‘पुरुष’ –तेनो ‘अर्थ’ (प्रयोजन) अने ‘सिद्धिनो उपाय’ –तेनुं वर्णन
करीने ‘पुरुषार्थसिद्धिउपाय’ नो अर्थ समजाव्यो. –तेनुं आमां वर्णन छे एटले के मोक्षना
उपायनुं वर्णन छे. रत्नत्रयरूप जेटला शुद्ध अंशो छे ते ज मोक्षनो उपाय छे, अने
जेटला रागादि अशुद्ध अंशो छे ते मोक्षमार्ग नथी, पण बंधनुं कारण छे. आवा मोक्ष
अने बंधना उपायोने भिन्नभिन्न स्वरूपे बराबर ओळखवा जोईए. ते ओळखीने जे
साची श्रद्धारूप सम्यग्दर्शन, ते मोक्षमार्गनुं मूळ छे, ते सम्यग्दर्शनपूर्वक ज ज्ञानने अने
चारित्रने मोक्षमार्गपणुं छे, एना वगरनां ज्ञान के चारित्र साचां होता नथी. आ रीते