आवा रत्नत्रयमार्गने मुनिवरो तो उत्तम प्रकारे निरंतर सेवी रह्या छे, तेमनी वृत्ति
परिणति तो अलौकिक होय छे; ने श्रावक धर्मात्माओ पण पोतानी शक्तिना प्रमाणमां
आवा ज रत्नत्रयरूप मार्गने सेवे छे. –भले तेमने मुनि जेटली उत्कृष्ट दशा न होय
परंतु तेओ पण सेवे छे तो मुनिना जेवा ज रत्नत्रयमार्गने, तेओ कांई बीजा मार्गने
सेवता नथी. रत्नत्रयथी विरुद्ध एवा रागादि अशुद्ध भावोने जे मोक्षउपाय माने तेने
तो मोक्षमार्गना स्वरूपनी ज खबर नथी, तत्त्वश्रद्धान ज साचुं नथी; अने ज्यां
तत्त्वश्रद्धान ज साचुं न होय त्यां तो श्रावकधर्म के मुनिधर्म एकेय होतां नथी. माटे राग
वगरना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गनुं यथार्थ स्वरूप ओळखीने प्रयत्नपूर्वक
तेनुं सेवन करवुं, –ए ज मुनिधर्म तथा श्रावकधर्मने उपासवानी रीत छे. –मुनिने तेनी
उग्र आराधना होय छे, श्रावकने तेनी मंद आराधना होय छे, –पण मार्ग तो बंनेनो
एक ज छे.
विकारवाळो ज अनुभवाय छे, ते भूतार्थस्वभावनी सन्मुखता ए मोक्षनुं बीज छे;
अने ते भूतार्थस्वभावथी विमुख परिणाम ते संसार छे.
अविचल रहेवुं–ते मोक्षनो उपाय छे. –आवा मोक्षउपायने साधनारा मुनिओनी वृत्ति
अलौकिक होय छे; अरे, सम्यग्द्रष्टिनी परिणति पण कोई अलौकिक होय छे.
स्वरूप माने तो तेनुं सेवन छोडीने मोक्षनो उपाय क््यांथी करे? विकल्पना एक अंशथी
पण आत्माने जे लाभ माने छे ते संसारना ज कारणने सेवे छे. विकल्प थाय–भले ते
शुभ होय तोपण–ते स्वरूपथी च्यूत छे, ज्ञानी तेने पोतानुं स्वरूप नथी मानता.
एनाथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूपने जाणीने तेमां अच्युत रहेवाना उद्यमी छे. पण श्रद्धा ज
जेनी खोटी छे, शुद्धस्वरूपनुं ज्ञान ज जेने नथी, ते शेमां स्थिति करशे? पहेलां साचुं स्वरूप