Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : पोष : २४९३
मूळभूत सम्यग्दर्शननी वात करीने पछी मुनिधर्मनी के श्रावकधर्मनी वात बतावशे.
आवा रत्नत्रयमार्गने मुनिवरो तो उत्तम प्रकारे निरंतर सेवी रह्या छे, तेमनी वृत्ति
परिणति तो अलौकिक होय छे; ने श्रावक धर्मात्माओ पण पोतानी शक्तिना प्रमाणमां
आवा ज रत्नत्रयरूप मार्गने सेवे छे. –भले तेमने मुनि जेटली उत्कृष्ट दशा न होय
परंतु तेओ पण सेवे छे तो मुनिना जेवा ज रत्नत्रयमार्गने, तेओ कांई बीजा मार्गने
सेवता नथी. रत्नत्रयथी विरुद्ध एवा रागादि अशुद्ध भावोने जे मोक्षउपाय माने तेने
तो मोक्षमार्गना स्वरूपनी ज खबर नथी, तत्त्वश्रद्धान ज साचुं नथी; अने ज्यां
तत्त्वश्रद्धान ज साचुं न होय त्यां तो श्रावकधर्म के मुनिधर्म एकेय होतां नथी. माटे राग
वगरना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गनुं यथार्थ स्वरूप ओळखीने प्रयत्नपूर्वक
तेनुं सेवन करवुं, –ए ज मुनिधर्म तथा श्रावकधर्मने उपासवानी रीत छे. –मुनिने तेनी
उग्र आराधना होय छे, श्रावकने तेनी मंद आराधना होय छे, –पण मार्ग तो बंनेनो
एक ज छे.
पुरुषार्थ एटले मोक्षरूपी प्रयोजन, तेनी सिद्ध केम थाय? तेनी वात छे.
आत्मानो जे शुद्ध भूतार्थस्वभाव, के जे खरेखर विकारथी भिन्न होवा छतां अज्ञानीने
विकारवाळो ज अनुभवाय छे, ते भूतार्थस्वभावनी सन्मुखता ए मोक्षनुं बीज छे;
अने ते भूतार्थस्वभावथी विमुख परिणाम ते संसार छे.
कर्म अने कर्म तरफना भावोथी रहित, ने पोताना अनंतगुण सहित एवो जे
चैतन्यपुरुष, तेना भूतार्थ–सत्य स्वभावने यथार्थपणे जाणवो श्रद्धवो अने तेमां
अविचल रहेवुं–ते मोक्षनो उपाय छे. –आवा मोक्षउपायने साधनारा मुनिओनी वृत्ति
अलौकिक होय छे; अरे, सम्यग्द्रष्टिनी परिणति पण कोई अलौकिक होय छे.
मोह–राग–द्वेषरूप विकारीभाव तो संसारनुं कारण छे; ते संसारना कारणने जे
आत्मानुं स्वरूप माने तो ते विपरीत श्रद्धा छे. संसारना कारणरूप भावने पोतानुं
स्वरूप माने तो तेनुं सेवन छोडीने मोक्षनो उपाय क््यांथी करे? विकल्पना एक अंशथी
पण आत्माने जे लाभ माने छे ते संसारना ज कारणने सेवे छे. विकल्प थाय–भले ते
शुभ होय तोपण–ते स्वरूपथी च्यूत छे, ज्ञानी तेने पोतानुं स्वरूप नथी मानता.
एनाथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूपने जाणीने तेमां अच्युत रहेवाना उद्यमी छे. पण श्रद्धा ज
जेनी खोटी छे, शुद्धस्वरूपनुं ज्ञान ज जेने नथी, ते शेमां स्थिति करशे? पहेलां साचुं स्वरूप