Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९३ आत्मधर्म : ३३ :
जाणे तो तेमां अविचल स्थिति करे. माटे भूतार्थ स्वभाव अनुसार साचुं ज्ञान तो
पहेलां ज करवुं जोईए. भले समजावतां वच्चे भेदथी कह्युं के ‘ज्ञान–दर्शन–
चारित्रस्वरूप आत्मा छे’ – पण त्यां कांई गुण–गुणीनो भेद अनुसरवा जेवो नथी पण
अभेद आत्मस्वभाव लक्षमां लेवानो छे. उपदेशकने पण ए स्वभाव बताववानो ज
आशय छे, ने श्रोताए पण तेनुं ज लक्ष राखीने श्रवण करवुं. –आ रीते जे परमार्थने
न समजे ने एकला भेदरूप व्यवहारने ज परमार्थ समजीने तेमां (विकल्पमां) अटकी
जाय तो ते साचो श्रोता नथी, उपदेशनुं परमार्थ रहस्य ते समज्यो नथी.
परभावथी भिन्न शुद्ध चैतन्यस्वरूपने जाणवुं–श्रद्धामां लेवुं ने तेमां रागरहित
स्थिति करवी–आवा जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज आ जीवने कार्य सिद्ध थवानो
उपाय छे, एटले ते ज एक मोक्षमार्ग छे; बीजो कोई मार्ग नथी, बीजो कोई सिद्धिनो
उपाय नथी, – सर्वथा नथी; एटले शुभराग जराक तो मोक्षनुं साधन थतो हशे ने? तो
कहे छे के ना, ते मोक्षनुं साधन सर्वथा नथी, जरापण नथी. शुद्ध स्वभावने अवलंबीने
जे रागवगरना निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज सर्वथा पुरुषार्थसिद्धिनो उपाय
छे, सर्वथा एटले ते एक ज मोक्षनो उपाय छे.
* मागशर वद ९ ना रोज सुरेन्द्रनगरमां शेठश्री फूलचंद चतुरभाईना सुपुत्र श्री
चंदुलाल फूलचंद स्वर्गवास पाम्या छे.
* मागशर वद १४ ना रोज मोटी मोणपरीना भाईश्री पोपटलाल केशवलाल
कामदार स्वर्गवास पाम्या छे.
जिनशासनना शरणे तेओ आत्महित साधे एम ईच्छीए छीए.