Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : पोष : २४९३
पण ए ज कहे छे के आत्मा स्वयं प्रकाशमान छे, आत्मानुं स्वसंवेदन–स्वानुभव तेमां
बीजा कोईनुं अवलंबन नथी. ते स्वयं पोतानी मेळे ज पोताने प्रकाशे छे.
अहा, आत्मानो प्रकाशस्वभाव तो एकदम स्पष्ट स्वसंवेदनरूप कार्य बतावे छे;
एमां जराय परोक्षपणुं रहे एवो आत्मानो स्वभाव नथी. ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते
पोताने के परने जाणे तेमां तेने रागनुं निमित्तनुं के बीजा कोईनुं अवलंबन लेवुं पडे
एवो तेनो स्वभाव नथी; कोईना अवलंबन वगर स्पष्ट–प्रत्यक्षपणे प्रकाशे एवो एनो
प्रकाशस्वभाव छे. पोते पोताथी स्वयं प्रकाशनारो छे. पोतानी स्वानुभूतिथी ज पोते
पोताने प्रकाशी रह्यो छे. तेमां बीजा कोईनुं अवलंबन नथी.
आवुं स्वयंप्रकाशीपणुं ए आत्मानो वैभव छे, आत्मानी ए साची संपदा छे.
शरूआतमां आचार्य भगवाने (पांचमी गाथामां) कह्युं हतुं के सुंदर आनंदनी छापवाळुं
जे प्रचुर स्वसंवेदन, तेना वडे मारो आत्मवैभव प्रगट थयो छे, अने मारा समस्त
आत्मवैभववडे हुं आ समयसारमां एकत्व–विभक्त शुद्ध आत्मा देखाडुं छुं. तमे तमारा
स्वानुभव–प्रत्यक्षवडे ते प्रमाण करजो. जुओ, साधकना श्रुतज्ञानमां पण आत्माने
स्वानुभव–प्रत्यक्ष करवानी ताकात छे. स्वयं प्रकाशमान अने स्पष्ट एवुं आत्मानुं
स्वसंवेदन श्रुतज्ञानवडे थई शके छे, ने एवुं स्वसंवेदन करे त्यारे ज साचुं आत्मज्ञान
थाय छे ने त्यारे ज धर्म थाय छे. ए स्वसंवेदनमां अतीन्द्रिय आनंद झरे छे,
अनंतगुणनी निर्मळता तेमां परिणमे छे.
आत्माने केम जाणवो तेनी आ वात छे. अहा, तुं पोते केवो, ने केवडो? ते
जाण्या विना तने तारो महिमा क््यांथी आवशे? महिमा आव्या वगर स्वसन्मुखता
क््यांथी थशे? अने स्वसन्मुखता वगर सम्यग्दर्शन क््यांथी थशे? सम्यग्दर्शन वगर
सुखनो राह क््यांथी हाथ आवशे? माटे हे भाई! तारुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं लक्षमां
लईने तेनो महिमा कर. स्वनो महिमा जागतां परनो महिमा ऊडी जशे, एटले स्व–
परनुं भेदज्ञान थईने स्वसन्मुखता थशे; स्वसन्मुख स्वसंवेदनमां तारो आत्मा स्वयं
प्रकाशमान थशे एटले के आनंदसहित अनुभवमां आवशे. सम्यग्दर्शनादि प्रगट
करवानी ने सुखी थवानी आ रीत छे. सुखना राह अंदरमां समाय छे. बहारमां
कांई नथी.