: पोष : २४९३ आत्मधर्म : प :
परम शांति दातारी
अध्यात्म भावना
[वीर सं. २४८२ अषाड वद १२ : समाधिशतक गा. ७७]
(अंक २७८ थी चालु) (लेखांक ४४मो)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
जेने आत्मस्वरूपमां ज आत्मबुद्धि थई छे ने देहादिने पोताथी जुदा जाण्या छे
एवा अंतरात्माने मरणप्रसंग आवतां शुं थाय छे ते हवे कहे छे–
आत्मन्येवात्मधीरन्यां शरीरगतिमात्मनः।
मन्यते निर्भयं त्यक्तवा वस्त्रं वस्त्रांतरग्रहम् ।।७७।।
चैतन्यस्वरूप आत्माने जाणीने तेमां ज जेणे एकत्वबुद्धि करी छे, ने देहनी गति–
परिणतिने पोताथी अन्य जाणी छे–एवा धर्मात्माने देह छूटवाना प्रसंग आवतां पण ते
निर्भय रहे छे, हुं मरी जईश एवो भय तेने थतो नथी, ते तो जेम एक वस्त्र छोडीने
बीजुं वस्त्र ग्रहण करवामां आवे तेम मरणने पण फक्त देहनुं रूपांतर जाणे छे. एक शरीर
पलटीने बीजुं शरीर आवे, ते बंने शरीरोथी पोताना आत्माने जुदो जाणे छे.
धर्मी अंतरात्मा पोताना ज्ञानपरिणमनने ज पोतानुं जाणे छे, शरीरना
परिणमनने ते पोतानुं नथी जाणता, तेने तो ते जडनुं परिणमन जाणे छे. शरीरनी
उत्पत्ति, बाल–युवान–वृद्ध अवस्थाओ के मरण ते बधायथी हुं जुदो छुं, हुं तो ज्ञानस्वरूप
छुं; शरीर छूटतां मारुं ज्ञान छूटतुं नथी माटे मारुं मरण नथी, एवा भानमां धर्मात्माने
मरणनो भय नथी. एक शरीर बदलीने बीजुं आव्युं, त्यां मने शुं? हुं तो सळंगपणे
रहेनार ज्ञानस्वरूप ज छुं. जेम वस्त्र पलटतां माणस दुःखी थतो नथी तेम शरीरने
वस्त्रनी माफक पोताथी भिन्न जाणनार ज्ञानीने शरीर पलटतां दुःख नथी थतुं. हजी तो
आ शरीर अहीं भडभड बळतुं होय ते पहेलां तो आत्मा स्वर्गमां उपजी गयो होय. ए
शरीरनी क्रियाओनुं स्वामीपणुं आत्माने नथी–एम पहेलेथी ज्ञानीए देहनी भिन्नता जाणी
छे. मारा विविध परिणामने लीधे शरीरनी विविध परिणति थाय छे एम धर्मी मानता
नथी. धर्मी तो ज्ञानपरिणामने ज पोतानुं कार्य जाणे छे, एटले के ते ज्ञातापणे ज रहे छे.