Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : माह : २४९३
आवा उत्तम पुत्र–पुत्रीओना परिवारथी शोभता भगवान एकवार सिंहासन
पर बिराजता हता; त्यां ब्राह्मी अने सुन्दरी बंने पुत्रीओए आवीने विनयपूर्वक
पिताजीने प्रणाम कर्या. त्यारे भगवाने तेमने गोदमां बेसाडीने मस्तक पर हाथ फेरव्यो,
मस्तक सुंघ्युं ने पछी हसतांहसतां कह्युं–बेटी, आवो! तमे एम धारता हशो के आजे
अमे देवोनी साथे अमरवन जईशुं,–परंतु हवे एम नहि बनी शके, केमके देवो तो
पहेलां ज चाल्या गया छे. एम क्षणभर भगवाने ते पुत्रीओ साथे क्रीडा करी तथा
तेमना शील अने विनयनी प्रशंसा करी. पछी कह्युं के–तमारुं बंनेनुं आवुं सुंदर शरीर
अने अनुपम शील, तेने जो विद्यावडे विभूषित करवामां आवे तो तमारो जन्म सफळ
थई जाय. आ लोकमां विद्यावान मनुष्य पंडितोवडे सन्मान पामे छे; विद्या ज साचो
भाई अने विद्या ज साचो मित्र छे, विद्या ज साथे रहेनारूं धन छे; साची विद्यावडे सर्व
मनोरथ सिद्ध थाय छे. माटे हे पुत्रीओ! तमे विद्याने ग्रहण करो.
एम कहीने भगवाने ते बंने पुत्रीओने वारंवार आशीर्वाद आप्या, अने
पोताना चित्तमां स्थित श्रुतदेवतानुं स्मरण करीने बंने हाथवडे अ आ वगेरे
अक्षरमाळा तथा १ २ ३ वगेरे अंको शीखव्या. भगवानना मुखथी नीकळेली अने
सिद्धमातृका जेनुं नाम छे, तथा ‘सिद्धं नमः’ एवुं अत्यंत प्रसिद्ध जेनुं मंगळाचरण छे–
एवी शुद्ध अक्षरावली, तेमज गणित, व्याकरण, काव्य वगेरे समस्त विद्याओ ब्राह्मी
तथा सुंदरीए धारण करी. पिता ज जेना गुरु छे एवी ते बंने पुत्रीओ विद्यावडे
सरस्वती समान शोभवा लागी. भगवाने भरत–बाहुबली वगेरे सर्वे पुत्रोने पण
चित्रकळा, नाट्यकळा वगेरे अनेक प्रकारनी विद्याओ भणावी अने साथेसाथे
आत्मज्ञानरूप अध्यात्मविद्याना पण उत्तम संस्कारो आप्या.
(आगामी अंके राज्याभिषेक, वैराग्य अने दीक्षा)