Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : १७ :
गुरुदेवनी साथे साथे * (सोनगढथी हिंमतनगर)
[पोष सुद १२ थी महा सुद पांचम]
पोष सुद १२नी सवारमां सोनगढमां सीमंधरनाथ आदि जिनभगवंतोना दर्शन
करीने, स्वाध्याय मंदिरमां मांगळिकरूपे गुरुदेवे कह्युं–आ आत्मा नित्य छे, ते नित्यनुं
कार्य शुं? –के पोताना निजकार्यनो ते कर्ता छे तथा तेनो भोक्ता छे. निजकार्य शुं? के
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप कार्य ते खरूं निजकार्य छे. अने तेनी पूर्णतारूप मोक्ष छे. ने
‘सुधर्म’ ते मोक्षनो उपाय छे. सु–धर्म एटले सम्यक्धर्म, निश्चयधर्म ते एक ज मोक्षनो
उपाय छे. आवा मोक्षउपायने साधवो ते आत्मानुं खरूं निजकार्य छे, ने ते मंगळरूप छे.
मांगळिकमां आत्माना निजकार्यनी आ वात आवी छे. –एम घणा प्रमोदथी कह्युं. ने
पछी जयजयनाद वच्चे जिनेन्द्र–प्रतिष्ठा माटे अने तीर्थयात्रा माटे मंगलप्रस्थान कर्युं.
मोटरमां बेसतां पहेलां स्वाध्यायमंदिरना पगथिये ऊभा रहीने क्षणभर मानस्तंभना
सीमंधरनाथने नीहाळी रह्या... बीजी ज क्षणे ‘मंगलवर्द्धिनी’ मंगलनाद करती करती
तीर्थधाम तरफ दोडवा लागी. –जो के एने सोनगढ छोडवुं गमतुं न हतुं तेथी शरूमां तो
ते साव धीमे धीमे चालती हती, पण पछी जिनबिंबप्रतिष्ठानी अने तीर्थयात्रानी
गुरुदेवनी भावना जाणीने ते पण होंसथी दोडवा लागी.
थोडीवार थई त्यां सोनगढ छूटयुं ने लाठी आव्युं, अनेक भक्तोए सवारमां
गुरुदेवना दर्शन कर्या. पछी आव्युं पू. बेननुं अमरेली, त्यांथी पसार थतां अनेक
संस्मरणो जागता हता...त्यां तो आंकडिया आवी गयुं...पंचकल्याणक महोत्सवनी पूर्व
तैयारीओथी गामनुं वातावरण म्हेकतुं हतुं. शांतिनाथप्रभुना शांतप्रतिमाजीना दर्शन
कर्या; नवा जिनमंदिरनुं अवलोकन कर्युं. वातावरणमां प्रसन्नता छवाई गई. थोडीवार
रोकाईने अमरापुर पहोंच्या.
प्रवासनो आ पहेलो मुकाम; ग्राम्यजनताए नानकडुं स्वागत कर्युं. सोनगढ–
ब्रह्मचर्याश्रममां रहेता ब्र. ताराबहेननुं आ गाम; तेमना कुटुंबनी विनतिथी गुरुदेव
पधार्या. सौए भक्तिथी लाभ लीधो. सोनगढथी पू. बेनश्री–बेन वगेरे पण पधार्या
हता. गामडाना अत्यंत निवृत्त अने शांत वातावरणमां गुरुदेव प्रसन्नचित्त हता.