: माह : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
अंधाराने जाणनारो छुं–एम जाणे छे. तेम रागादिभावो अंधारा जेवा छे ते अज्ञानमय
भावोने जाणनार पोते अज्ञानमय नथी; अज्ञानमय भावो पोते पोताने नथी जाणता, तेने
जाणनार तो ज्ञानमय छे. रागादिने जाणतां ‘आ रागादि ज हुं छुं’ एम अज्ञानी अनुभवे
छे; पण रागने जाणतां ‘आ राग छे, ने हुं तो ज्ञान छुं’ एम ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो
अनुभव करवो ते ज्ञानकळा छे; तेने ज प्रज्ञाछीणी कहेवाय छे. आवी प्रज्ञाछीणी प्रगट करवी
ते धर्म छे, ते मोक्षनुं साधन छे.
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धर्मीजीव–के जेणे प्रज्ञावडे रागथी जुदो आत्मा अनुभव्यो छे, ते जाणे छे के मारो
आनंद मारामां भरेलो छे, एने जाणीने हे जिनेश्वरदेव! ‘धर्म’ एवो आत्मानो स्वभाव तेनुं
अमे शरण लीधुं छे, श्रद्धामां–ज्ञानमां तेनुं ज आलंबन लीधुं छे, ते धर्मनो अमने रंग लाग्यो
छे, तेमां हवे भंग पडवानो नथी. चैतन्यनी जे प्रीति लागी तेमां हवे बीजानी प्रीति वच्चे
कदी आववानी नथी. –आम निःशंकपणे धर्मी जीव मोक्षनो साधक थयो छे. आवुं भान ने
आवुं साधकपणुं नरकना जीवोनेय थई शके छे, बाळकने पण थई शके छे. ने आवुं ज्ञान करवुं
ते ज धर्मनो उपाय छे.
वैराग्य समाचार
* सोनगढ पासे जींथरी होस्पिटलमां मीठालालभाई रखियालवाळानो स्वर्गवास थयाना
समाचार लाठी मुकामे आव्या...ने वातावरण एकदम वैराग्यमां पलटाई गयुं. हजी तो बे दिवस पहेलां
गुरुदेवे सोनगढथी विहार करतां पहेलां जींथरी जईने तेमने दर्शन दीधेला, ते वखते तबीयत सुधारा उपर
हती; ए वातने पूरा ४८ कलाक पण न थया त्यां तो हार्टफेईलथी तेओ स्वर्गवास पामी गया. तेओ कहेता
के–गुरुदेव चारमास माटे बहार जाय छे पण मारा आ जीवननो शो भरोसो? तेमने शरीरनी दरकार न
हती; तेओ कहेता के हिंमतनगरना पंचकल्याणक उत्सव वखते तो हुं जरूर आवीश, डोकटर मने रजा नहि
आपे तोपण हुं तो आवीश. –आ वैराग्यप्रसंगने प्रवचनमां पण गुरुदेव याद करता हता. तेओ तत्त्वना
जिज्ञासु हता, उत्साही हता, रखियालमां भव्य दि. जिनमंदिर बंधाववामां तेमनो घणो उत्साह हतो; ने
अवारनवार सोनगढ आवीने तेओ लाभ लेता हता.
* गुरुदेव जसदण बिराजता हता ते दरमियान सोनगढथी गुणश्रीजीना स्वर्गवासना समाचार
आव्या, जेओ प्रथम श्वेतांबर संप्रदायमां साध्वी हता, पण पाछळथी छेल्ला वीसेक वर्षथी जिज्ञासुभावे
सोनगढ रहीने गुरुदेवना सत्संगनो लाभ लेता हता. छेल्ला घणा समयथी तेओ बिमार हता; ने थोडा
दिवस पहेलां पू. गुरुदेव तेमने दर्शन देवा पधार्या हता, तथा पू. बेनश्रीबेने पण पधारीने तेमने उच्च
आत्मभावना संभळावी हती. सोनगढमां गुरुदेवना विहार पछी आठमे दिवसे तेओ स्वर्गवास पाम्या.
* राणपुरवाळा रायचंद जीवराजभाई खंधार ता. २९–१–६७ना रोज मुंबई मुकामे स्वर्गवास
पाम्या छे. –सद्गत आत्माओ देव–गुरुना शरणे आत्मशांति पामो.