: ३६ : आत्मधर्म : माह : २४९३
राणपुरमां मोक्षनी क्रिया
माह सुद २–३ ना दोढ दिवसमां त्रण प्रवचनद्वारा गुरुदेवे राणपुरमां
मोक्षनी क्रिया समजावी...ते अहीं आपी छे.
ज्ञानक्रिया ते आत्मानी क्रिया छे, ते क्रिया आत्माना स्वभावनी जात छे, एटले
ते क्रिया तो मोक्षनुं कारण थाय छे, तेथी ते क्रियानो निषेध नथी. त्यारे क्रोधादिभावरूप
विकारी क्रिया तो ज्ञानथी भिन्न छे, आत्माना स्वभावनी क्रिया ते नथी, ते तो आत्माना
स्वभावथी विरुद्ध क्रिया छे. तेथी ते क्रिया मोक्षनुं कारण नथी पण बंधनुं कारण छे, तेथी
ते क्रियानो निषेध छे.
भाई, तने मोक्षनुं कारण थाय एवी क्रिया कई? ते समजावे छे. आत्माने जे
मोक्षनुं कारण थाय ते आत्मानी साची क्रिया छे; आत्माने जे बंधनुं कारण थाय ते तेनी
साची क्रिया नथी.
आत्मा ज्यारे पोताना स्वरूपमां एकाग्र थाय छे त्यारे तेनामां ज्ञानक्रिया तो
रहे छे. पण क्रोधादिना कर्तृत्वरूप क्रिया छूटी जाय छे. माटे क्रोधादिनुं कर्तृत्व ते आत्मानी
खरी क्रिया नथी. राग के जे आत्माने बधंनुं कारण छे तेना कर्तृत्वमां जे अटके ते जीव
मोक्षने कई रीते साधशे? मोक्षने साधवानी क्रिया तो राग वगरनी छे.
आत्मानी ज्ञानक्रिया स्वतंत्र छे, तेमां बीजानी ओशियाळ नथी. जडनी क्रिया तो
आत्मानी छे ज नहि. ज्ञानक्रिया स्वाधीन होवाथी सुगम छे; देहादिनी क्रिया तो
त्रणकाळमां आत्मानी थई शकती नथी, केमके जडनी क्रिया चेतननी कदी थई शके नहीं.
चैतन्यनुं भान करीने, राग वगरनी ज्ञानक्रियावडे अनंता जीवो मोक्षने पाम्या छे.
आठवर्षना बाळक पण आवी क्रियावडे मोक्ष पामी शके छे. आ सिवाय रागनी के जडनी
कोई क्रियावडे आत्मा कदी मोक्ष पामे नहीं.
जेने रागनो प्रेम छे तेने ज्ञान प्रत्ये द्वेष छे. ने जेने ज्ञाननो प्रेम जागे तेने
रागनो प्रेम रहेतो नथी. रागनी क्रिया मारी ने हुं तेनो कर्ता, एम जे जीव