Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 40 of 47

background image
: माह : २४९३ आत्मधर्म : ३७ :
रागक्रियामां निःशंक पोतापणे वर्ते छे ते अज्ञानी जीव पोतानी ज्ञानक्रियाने ओळखतो
नथी, एटले धर्मक्रियाने ओळखतो नथी. शुभराग मने धर्मनुं साधन थशे –एम
माननार पण रागक्रियाने ज पोतानी माने छे, एटले ते रागने ज सेवे छे, पण ज्ञानने
सेवतो नथी. तेने संतो समजावे छे के भाई! तारी तो ज्ञानक्रिया छे, ने राग तो जुदी
जात छे. –एम भिन्नता समजीने रागनुं कर्तृत्व छोड ने ज्ञानक्रियाने जाण. ज्ञानक्रिया ज
मोक्षनुं कारण छे.
अरे, अनादिकाळना बंधनथी छूटकारानी वात अमे तने संभळावीए, ने होंस
न आवे–ए केम बने? बार कलाकथी बंधायेला वाछडांने सवारमां ज्यां पाणी पावा
माटे छोडे त्यां छूटकाराना उल्लासथी कुदाकुद करे छे. तो तुं अनादिकाळनो संसारबंधनथी
दुःखी, –तो हवे तारुं अज्ञान केम मटे, ने दुःख टळीने मोक्षसुख केम मळे ते माटेनी आ
ज्ञानक्रिया सन्तो तने समजावे छे, तो छूटकारानो आ उपाय सांभळतां कया मुमुक्षुने
उल्लास न जागे?
– * –
पू. श्री कानजीस्वामी दि. जैन तीर्थयात्रा संघ
सोनगढ (सौराष्ट्र)
जे जे यात्रिकोनी अरजी मंजूर थई छे तेओने एक परिपत्र नं. १ मोकल्यो छे.
तेमां जणाव्या मुजब बसभाडाना बाकीना रूा. ता. २प–२–६७ सुधीमां मोकली आपवा
विनंति छे. जो आप चेक अथवा ड्राफटथी रूा. मोकलो तो खीमचंद जेठालाल शेठ एन्ड
अधर्स ना
नामथी मोकलशो.
परिपत्र साथे एक दाखलो मोकल्यो छे ते प्रमाणे आपनुं रेशनकार्डमांथी नाम
केन्सल करावी तेनो दाखलो पण तुरत मोकली आपवा विनंती छे.
लि.
पत्रव्यवहारनुं सरनामुं:–
मेनेजर
श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ
(सौराष्ट्र)