Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : ३ :
भावभासन नथी तेथी ते मोक्षमार्गने साधवानुं जाणतो नथी; ते तो बंधपद्धतिने ज
भ्रमथी मोक्षनुं साधन मानीने साधे छे. आ रीते अज्ञानी आगमी के अध्यात्मी नथी.
प्रश्न:– अज्ञानीने अध्यात्मपद्धति नथी एटले तेने ‘अध्यात्मी’ भले न कहो,
परंतु आगमपद्धति एटले के विकार अने कर्मनी परंपरा तो ते अज्ञानीने घणी छे, छतां
तेने ‘आगमी’ पण केम न कह्यो?
उत्तर:– मिथ्याद्रष्टिने विकार तो छे एटले के आगमपद्धत्ति तो छे–ए खरुं पण
आगमपद्धत्तिनुं ज्ञान तेने नथी; विकारने विकार तरीके ते जाणतो नथी माटे तेने
‘आगमी’ न कह्यो. अहीं ‘आगमी’ एटले ‘आगमपद्धत्तिवाळो’ एवो अर्थ नथी, पण
आगमी एटले ‘आगमपद्धत्तिनो ज्ञाता’ एवो अर्थ थाय छे. अज्ञानी आगमपद्धत्तिने
पण ओळखतो नथी. विकार पोते करे छे, ने कर्म तेमां निमित्त छे, ते कर्म कांई विकार
करावतुं नथी; छतां अज्ञानी पोताना दोषनुं उत्पादक पर द्रव्यने माने छे. पोताना
गुणदोषनुं उत्पादक पर द्रव्यने मानवुं ते तो मोटी अनीति छे. दरेक वस्तु अने तेनां
परिणाम परथी निरपेक्ष ने पोताथी सापेक्ष छे– एवो अनेकान्त छे; आवुं वस्तुस्वरूप
समजे तो पोताना गुण–दोष परने लीधे न माने एटले एकताबुद्धिथी परमां रागद्वेष न
थाय. ते जीव भेदज्ञान वडे परथी पृथक् थई परथी निरपेक्ष थई स्वतरफ वळे ने
स्वापेक्षपणे एटले के स्वाश्रय वडे मोक्षमार्ग प्रगट करे. पुद्गलना परिणाम पण तेनाथी
पोताथी सापेक्ष छे ने बीजाथी निरपेक्ष छे. जगतना बधा पदार्थोने अने तेनी पर्यायोने
परमार्थे स्वथी सापेक्षपणुं छे, केमके वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी;
पर्याय ते पण वस्तुनी पोतानी ते प्रकारनी शक्ति छे, ते पण खरेखर परनी अपेक्षा
राखती नथी. आवा वस्तुस्वभावने अज्ञानी जाणतो नथी; माटे ते आगमी पण नथी
ने अध्यात्मी पण नथी; ने ते मोक्षमार्गने साधी शकतो नथी.
आ रीते, धर्मी–सम्यग्द्रष्टि जीव आगम–अध्यात्मना ज्ञाता छे ने ते मोक्षमार्गने