Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ७ :
भागमां शांतिनाथप्रभुना खड्गासन प्रतिमाजीनी प्रतिष्ठा (रूा. वीसहजार ने एकमां
उछामणी लईने) तलोदना भाईश्री कोदरलाल हाथीचंदे करी हती. आ उपरांत बीजा
भगवंतोनी तेम ज जिनवाणी मातानी अने मंदिरना कलश–ध्वजनी उछामणी पण
बीजा भाईओए घणा उत्साहपूर्वक लीधी हती. आम घणा ज उत्साहपूर्वक सौए
प्रतिष्ठामां भाग लीधो हतो. जिनबिंबप्रतिष्ठा पछी जिनमंदिर उपर सवापांच फूट
जेटलो उन्नत सोनेरी कळश तथा ध्वज चढाववामां आव्या...ने कळश–ध्वजथी भव्य
जिनमंदिर खूब ज शोभी ऊठ्युं. आ बधी विधि दरमियान जिनमंदिरना शिखरनी
एकदम नजीक आवीने हेलिकोप्टर–विमान आकाशमांथी पुष्पवृष्टि कर्या ज करतुं हतुं...ने
भक्तो आनंदथी ए पुष्पोने झीलवा प्रयत्न करता हता.
प्रतिष्ठा पछी मोटो शांतियज्ञ थयो ने बपोरना प्रवचन पछी काशीना पं. श्री
फूलचंदजी शास्त्रीए तथा ईन्दोरना पं. श्री बंसीधरजी शास्त्रीए श्रद्धांजलि रूपे प्रवचन
कर्युं. पंडितजीए फरीने पण कह्युं के जो जिनका मत है वोही कानजीका मत है, दिगंबर
जैनधर्मकी आपके द्वारा महान प्रभावना हूई है और हो रही है. त्यारबाद उत्सवनी
पूर्णताना उपलक्षमां भगवान जिनेन्द्रदेवनी भव्य रथयात्रा नीकळी हती, घणा
उल्लासपूर्वक आखी नगरीमां रथयात्रा फरी हती, ने पारसप्रभुना रथना सारथी तरीके
पू. श्री कहानगुरु शोभता हता. रथयात्रानी शोभा जोवा आखुं नगर उमट्युं हतुं. रात्रे
जिनमंदिरमां भक्ति थई हती.
आम हिंमतनगरना मुमुक्षुभाईओए थोडी संख्या होवा छतां मोटो
प्रतिष्ठामहोत्सव उजव्यो ने घणी हिंमतपूर्वक सफळताथी शोभाव्यो. गुजरातना
आसपासना घणा मुमुक्षु भाईओनो खूब ज उमंगभर्यो साथ ने सहकार मळ्‌यो हतो.
देशभरमांथी दशहजार उपरांत भक्तजनोए आवीने उत्सवने शोभाव्यो हतो.
फत्तेपुरना भाईश्री बाबुभाईए पण हरेक प्रकारनी व्यवस्थामां दोरवणी आपीने सौना
उत्साहमां बळ पूर्युं हतुं.
बीजे दिवसे माह सुद बारसनी सवारमां जिनेन्द्रभगवंतोना दर्शन–स्तवन
करीने पू. गुरुदेवे हिंमतनगरथी अमदावाद प्रस्थान कर्युं. त्यांथी बपोरे सोनगढ तरफ
प्रस्थान कर्युं... वच्चे ओमकारनदी आवी. सोनगढ जेम जेम नजीक आवतुं गयुं तेम
तेम शांत हृदयोर्मिओ जागवा लागी....चार वागे सोनगढ आव्या...गुरुदेवे