Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
भावभीनां हृदये सीमंधरनाथना दर्शन कर्या...बे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ने एक वेदी
प्रतिष्ठा करीने बराबर एक महिने फरी सोनगढमां सीमंधर प्रभुने भेटतां गुरुदेवनुं
चित्त अनेरी शांति अनुभवतुं हतुं ने सौने लागतुं के भले बधे फरीए...पण अंते
सोनगढ तो सोनगढ ज छे...अहीं कोई जुदी ज शांति लागे छे. सांजे भाईश्री
हिंमतभाईने त्यां गुरुदेवनुं आहारदान थयुं, बीजे दिवसे सवारमां सोनगढथी
मंगलप्रस्थान करीने गुरुदेव भावनगर पधार्या.
भ...ज...न
प्राचीन कवि ‘न्यामत’जी एक भजनमां कहे छे–
विना समकित के चेतन जनम विरथा गंवाता है
तुझे समजाएं क्या मूरख! नहीं तुं दिलमें लाता है
है दर्शन–ज्ञान गुण तेरा, ईसे भूला है क्यों मूरख?
अरे, अब तो समझ ले तूं, चला संसार जाता है
तेरे में और परमातम में कूछ नहीं भेद अय चेतन!
रतन आतम को मूरख कांच बदले क्यों बिकाता है?
(कविए ठपको आपीने सम्यक्त्वनी केवी प्रेरणा करी छे!)