Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ९ :
परम शांति दातारी
अध्यात्म भावना
(अंक २८० थी चालु) (लेखांक ४७)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(वीर सं. २४८२ श्रावण सुद एकम: मंगळवार: समाधिशतक गा. ८१)
हवे शिष्य पूछे छे के हे नाथ! आपे आत्मामां स्थिरतानो अभ्यास करवानुं कह्युं ण ते
तो व्यर्थ लागे छे, आत्माना अभ्यासमां परिपकव थवानो उद्यम करवानी कांई जरूर
लागती नथी, केम के शरीर अने आत्मा भिन्न छे–एवी धारणाथी अथवा एवुं
सांभळवाथी अथवा स्वयं बीजाने कहेवाथी ज मुक्ति थई जशे! –पछी स्थिरतानो उद्यम
करवानुं शुं प्रयोजन छे? –शिष्यना आवा प्रश्नना उत्तरमां आचार्य पूज्यपाद स्वामी कहे
छे–
श्रृण्वन्नप्यन्यतः कामं वदन्नपि कलेवरात्।
नात्मानं भावयेद्भिन्नं यावत्तावन्न मोक्षभाक्।८१।
देह अने आत्मा जुदा छे एम वारंवार ईच्छापूर्वक सांभळवा छतां, तथा
बीजाने कहेवा छतां, अने एवी धारणा करवा छतां, ज्यांसुधी पोते अंतर्मुख थईने आ
कलेवरथी भिन्न आत्माने भावतो नथी–अनुभवतो नथी त्यां सुधी जीव मुक्ति पामतो
नथी.
देहथी आत्मा जुदो छे–एवी वाणी गुरु पासे लाखो वरस सुधी सांभळे अने
पोते पण लाखो माणसोनी सभामां तेनो उपदेश करे, ते तो बंने पर तरफनी
आकुळवृत्ति छे. वाणी तो पर छे–अनात्मा छे, तेना आश्रये आत्मानी प्राप्ति थती नथी.
वाणी सांभळवानो ने कहेवानो अभ्यास ते कांई स्व–अभ्यास नथी, एटले ते कांई
मोक्षनुं कारण नथी. मोक्षनुं कारण तो स्व–अभ्यास छे; स्व–अभ्यास एटले शुं?
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने देहथी भिन्न जाणीने, अंतर्मुख थईने वारंवार एकाग्रतानो
अभ्यास करवो तेनुं नाम स्व–अभ्यास छे, ने ते मोक्षनी प्राप्तिनो उपाय छे. अंतर्मुख
थईने आवी आत्मभावना जे करे तेणे श्रीगुरुनो उपदेश