Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ११ :
मूर्छित आत्माने सजीवन करनारी शक्ति
आत्मानी जीवत्व वगेरे शक्तिओना विवेचन द्वारा गुरुदेवे ज
अद्भुत ‘आत्मवैभव’ देखाड्यो छे, तेनो थोडोक नमूनो जिज्ञासुओने
जरूर गमशे. (आत्मवैभव पुस्तक धीमे धीमे छपाई रह्युं छे.
अहो, आत्मानी शक्तिनी आ वात! –ते उत्साहथी सांभळतां अनादिनी मूर्छा
ऊतरी जाय–एवी छे. पुराणमां विशल्यानी वात आवे छे, –ते नजीक आवतां ज
लक्ष्मणनी मूर्छा दूर थवा लागी; तेम शल्यरहित एवी वि–शल्या ज्ञानपरिणति ज्यां
प्रगटी त्यां बधा गुणोमांथी मिथ्यापणानी मूर्छा ऊतरी गई ने बधा गुणो स्वशक्तिनी
संभाळ करता जाग्या. विशल्या पूर्वभवमां चक्रवर्तीनी पुत्री हती; एकवार जंगलमां
अजगर तेने गळी गयो; तेनुं अडधुं शरीर अजगरना मुखमां ने अडधुं बहार हतुं.
अजगरना मोढामांथी तेने छोडाववा चक्रवर्तीए धनुष्यबाण तैयार कर्या, पण
विशल्याना जीवे तेने अटकावतां कह्युं–पिताजी! हुं तो हवे बचवानी नथी, मारा खातर
अजगरने न मारशो. आ प्रकारना शुभ परिणामना फळमां ते विशल्याने एवी ऋद्धि
हती के तेना स्नानना जळना छंटकावथी गमे तेवुं विष के मूर्छा ऊतरी जाय. आ
विशल्या ते लक्ष्मणनी पत्नी थनार हती. ज्यारे राजा रावण साथेना युद्धमां रावणनी
शक्तिना प्रहार वडे लक्ष्मण मूर्छित थईने ढळी पड्या ने चारेकोर हा–हाकार थई गयो;
रामचंद्र पण हताश थई गया; हनुमान वगेरे मोटामोटा विद्याधर राजकुमारो पण बेठा
हता. जो सवार सुधीमां आनो उपाय न मळे तो लक्ष्मणना जीववानी आशा न हती.
अंते कोईए उपाय बताव्यो के जो ‘विशल्यादेवी’ ना स्नाननुं जळ छांटवामां आवे तो
लक्ष्मण बची जाय. पछी तो तरत ज विशल्याने तेडावी; ते नजीक आवतांवेंत लक्ष्मणने
लागेली रावणनी शक्ति भागी, ने लक्ष्मणजी पोतानी शक्ति सहित जाग्या. तेम
चैतन्यलक्षणी लक्ष्मण एवो आ आत्मा, ते अनादिथी निजशक्तिने भूलीने
मोहशक्तिथी बेभान बन्यो छे, पण ज्यां शल्यथी विरहित एवी निःशल्य–निःशंक
श्रद्धारूपी सम्यक्त्वशक्ति जागी त्यां मोहशक्तिओ भागी, ने चैतन्यलक्षी भगवान
आत्मा पोतानी अनंत