: फागण : २४९३ आत्मधर्म : १३ :
भगवान ऋषभदेव
तेमना पवित्र जीवननी आनंदकारी कथा
भगवत् जिनसेनस्वामी रचित महापुराणना आधारे: ले० ब्र. हरिलाल जैन
(लेखांक ११)
भगवान ऋषभदेवनी पावन जीवनकथा चाली रही छे; दश भव सुधी
धार्मिक संस्कारो वडे आत्माने साधता साधता अंतिम अवतारमां
तीर्थंकरपणे जन्म्या छे. हवे भगवानना राज्यकाळनुं तथा
दीक्षाप्रसंगनुं भावभीनुं वर्णन आप अहीं वांचशो. आ फागणमासमां
ज आ दीक्षाप्रसंग बन्यो हतो.
भगवान ऋषभदेवनुं कुल आयु चोरासीलाख पूर्वनुं हतुं; तेमांथी कुमारकाळना
वीशलाख पूर्व पूरा थया. ते वखते काळना प्रभावथी (–त्रीजो आरो पूरो थईने चोथो
आरो नजीक आवतो हतो तेथी) कल्पवृक्षो सुकावा मांड्या, तेमनी शक्ति घटी गई,
वगर वाव्ये जे अनाज ऊगता ते पण दुर्लभ थई गया ने प्रजामां रोग वगेरे थवा
लाग्या; तेथी भयभीत थईने जीववानी आशाथी प्रजाजनो नाभिराजा पासे आव्या.
अने नाभिराजाए तेमने भगवान ऋषभदेव पासे मोकल्या.
सनातन–भगवानना शरणे आवीने प्रजाजनो कहेवा लाग्या के हे देव!
पितासमान अमारुं पालन करनारां कल्पवृक्षो हवे नष्ट थई गयां, भूख–तरस ने ठंडी–
गरमीना अनेक उपद्रव थवा लाग्या; तो आ उपद्रवथी अमारी रक्षा थाय ने अमारी
आजीविका चाले एवो उपदेश आपो, ने अमारा पर प्रसन्न थाओ.
प्रजानां दीनवचनो सांभळीने भगवानना हृदयमां दया जागी, तेमणे भयभीत
प्रजाने आश्वासन आप्युं ने मनमां विचारवा लाग्या के, कल्पवृक्षो नष्ट थतां अहीं हवे
भोगभूमिनो काळ पूरो थईने कर्मभूमि शरू थई छे. तेथी असि–मसि–कृषि (अर्थात्
रक्षण–वेपार–खेती –लेखन) वगेरे कार्योनी तथा जुदा जुदा गाम–घर वगेरेनी जेवी
रचना पूर्व अने पश्चिम विदेहक्षेत्रमां वर्ते छे तेवी अहीं प्रवर्ताववी योग्य छे–जेथी
लोकोनुं रक्षण अने आजीविका सुखपूर्वक थाय.