Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
आ रीते, पूर्वना आराधकपुण्यना प्रतापे सूर्य–चंद्र वगेरे उत्तम देव–देवेन्द्रो पण
जेमनी आज्ञा शिरोधार्य करता हता, पण जेमना उपर कोईनी आज्ञा चालती न हती
एवा भगवान ऋषभदेवे अयोध्याना राजसिंहासन उपर आरूढ थईने समुद्रपर्यन्त
समस्त पृथ्वीनुं राज्य कर्युंर्.
वैराग्य अने दीक्षा
अयोध्यानगरी...ने फागण वद नोम...
भगवान ऋषभदेवनो जन्मदिवस आनंदथी उजवाई रह्यो छे. ए उत्सवमां
भाग लेवा ईन्द्र पण अप्सराओने लईने आवी पहोंच्या ने भगवानने प्रसन्न करवा
माटे नृत्य प्रारंभ कर्युं. अप्सराओनुं अद्भुत नृत्य भगवान नीहाळी रह्या हता.
ए वखते ईन्द्रने विचार आव्यो के भगवान ऋषभदेव तीर्थंकर थवा अवतर्या
छे ने धर्मचक्रनुं प्रवर्तन करनारा छे. तेमने आ राजवैभवमां ८३ लाख पूर्व तो वीती
गया; हवे आ राज्य अने भोगोमांथी भगवान क्या प्रकारे विरक्त थाय! आम
विचारीने ते नृत्यकारोमां तेणे नीलांजना नामनी एक एवी देवीने नीयुक्त करी के जेनुं
आयुष्य थोडी क्षणोमां ज पूरुं थवानुं हतुं. ते नीलांजना देवी हाव–भावसहित फूदरडी
नृत्य करी रही हती, नृत्य करतां करतां ज तेनुं आयुष्य पूरुं थतां क्षणभरमां ते अद्रश्य
थई गई. वीजळीना झबकारानी माफक ते देवी अद्रश्य थतां, रंगमां भंग न थाय ते
माटे तरत ज ईन्द्रे एना जेवी ज बीजी देवीने नृत्यमां गोठवी दीधी.–परंतु दिव्य
ज्ञानवंत भगवान ते जाणी गया, ने संसारनी आवी अध्रुवता देखीने तत्क्षण ज भव–
तन–भोगथी अत्यंत विरक्त थया ने वैराग्यनी बार भावनाओ चिन्तववा लाग्या.
अरे, आ जीवे संसारमां चार गतिमां भयंकर दुःखो भोगव्या. आ मनोहर
देवीनुं शरीर पळवारमां नजर सामे ज नष्ट थई गयुं. आवुं जे माया–नाटक ईन्द्रे कर्युं ते
खरेखर तो मने प्रतिबोध पमाडवा माटे ज ते बुद्धिमाने युक्ति करी छे. आ
नीलांजनादेवीना दिव्य शरीरनी जेम जगतना बधा पदार्थो क्षणभंगुर छे, एनाथी हवे
मारे शुं प्रयोजन छे? ए भोगोपभोग तो भाररूप छे. आवा असार संसारने अने
क्षणिक राजभोगने धिक्कार हो. आ राजभोगने खातर मारो अवतार नथी, परंतु
आत्मानी पूर्णताने साधीने तीर्थंकर थवा मारो अवतार छे.