एवा भगवान ऋषभदेवे अयोध्याना राजसिंहासन उपर आरूढ थईने समुद्रपर्यन्त
समस्त पृथ्वीनुं राज्य कर्युंर्.
माटे नृत्य प्रारंभ कर्युं. अप्सराओनुं अद्भुत नृत्य भगवान नीहाळी रह्या हता.
गया; हवे आ राज्य अने भोगोमांथी भगवान क्या प्रकारे विरक्त थाय! आम
विचारीने ते नृत्यकारोमां तेणे नीलांजना नामनी एक एवी देवीने नीयुक्त करी के जेनुं
आयुष्य थोडी क्षणोमां ज पूरुं थवानुं हतुं. ते नीलांजना देवी हाव–भावसहित फूदरडी
नृत्य करी रही हती, नृत्य करतां करतां ज तेनुं आयुष्य पूरुं थतां क्षणभरमां ते अद्रश्य
थई गई. वीजळीना झबकारानी माफक ते देवी अद्रश्य थतां, रंगमां भंग न थाय ते
माटे तरत ज ईन्द्रे एना जेवी ज बीजी देवीने नृत्यमां गोठवी दीधी.–परंतु दिव्य
ज्ञानवंत भगवान ते जाणी गया, ने संसारनी आवी अध्रुवता देखीने तत्क्षण ज भव–
तन–भोगथी अत्यंत विरक्त थया ने वैराग्यनी बार भावनाओ चिन्तववा लाग्या.
खरेखर तो मने प्रतिबोध पमाडवा माटे ज ते बुद्धिमाने युक्ति करी छे. आ
नीलांजनादेवीना दिव्य शरीरनी जेम जगतना बधा पदार्थो क्षणभंगुर छे, एनाथी हवे
मारे शुं प्रयोजन छे? ए भोगोपभोग तो भाररूप छे. आवा असार संसारने अने
क्षणिक राजभोगने धिक्कार हो. आ राजभोगने खातर मारो अवतार नथी, परंतु
आत्मानी पूर्णताने साधीने तीर्थंकर थवा मारो अवतार छे.