Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 53

background image
: फागण : २४९३ आत्मधर्म : १७ :
आ प्रमाणे वैराग्यचिन्तनपूर्वक भगवान आ असार संसारथी विरक्त थया, ने
शीघ्र मुक्तिने साधवा माटे उद्यमी थया. ए वखते भगवानने एवी विशुद्धी प्रगटी–जाणे
के मुक्तिनी सखी ज आवी पहोंची. मोक्षमां ज जेमनुं चित्त लागेलुं छे एवा ते
भगवानने आखुं जगत शून्य जेवुं असार लागतुं हतुं. भगवानना अंतःकरणनी
समस्त चेष्टाओ उपरथी ईन्द्रे अवधिज्ञानवडे जाणी लीधुं के भगवान हवे संसारथी
विरक्त थई गया छे ने मुनिदशा माटे तत्पर थया छे.
तरत ज ब्रह्मस्वर्गमांथी लोकांतिक देवो भगवानना तपकल्याणकनी पूजा करवा
ऊतर्या; ने स्तुतिपूर्वक वैराग्यनुं अनुमोदन कर्युं. आठ प्रकारना ते लोकान्तिकदेवो
पूर्वभवमां संपूर्ण श्रुतज्ञानना अभ्यासी (श्रुतकेवळी) होय छे, घणा शान्त ने सर्व
देवोमां उत्तम होय छे, तथा एकावतारी होय छे, लोकनो अंत पाम्या होवाथी अथवा
ब्रह्मलोकना अंतमां रहेता होवाथी तेओ लोकान्तिक कहेवाय छे. मुक्तिसरोवरना किनारे
रहेला ते देवो स्वर्गना हंस जेवा छे. तेमणे आवीने कल्पवृक्षनां फूलोवडे भगवानना
चरणोमां पुष्पांजलि चढावी ने स्तुति करी के हे भगवान! मोहशत्रुने जीतवा माटे आप
उद्यमी थया छो ते एम सूचवे छे के भव्यजीवो प्रत्ये भाईपणानुं कार्य करवानो आपे
विचार कर्यो छे. अर्थात् भाईनी जेम भव्य जीवोनी सहायता करवानो आपे विचार
कर्यो छे. हे ज्योतिस्वरूप देव! अमे आपने समस्त उत्तम कार्योना कारण समजीए
छीए. प्रभो, केवळज्ञानना प्रकाशवडे आप अज्ञानमां डुबेला संसारनो उद्धार करशो.
आपे देखाडेला धर्मतीर्थने पामीने भव्यजीवो आ दुस्तर संसारसमुद्रने रमतमात्रमां
तरी जशे. आपनी वाणी भव्यजीवोना मनने प्रफुल्लित करशे. प्रभो! आप धर्मतीर्थना
नायक छो. मोहरूपी कीचडमां फसायेला आ जगतने धर्मरूपी हाथनो सहारो दईने आप
शीघ्र उद्धार करशो. प्रभो! आप स्वयंभू छो, मोक्षनो मार्ग आपे स्वयं जाणी लीधो छे
ने अमने बधाने पण आप ते मुक्तिमार्गनो उपदेश देशो. प्रभो! अमे तो आपने
प्रेरणा करनारा कोण? आ तो मात्र अमारो नियोग छे. आ भव्यचातको मेघनी माफक
आपना धर्मामृतनी राह जुए छे. प्रभो! अत्यारनो काळ आपना धर्मरूपी अमृतने
उत्पन्न करवा माटे योग्य छे, माटे हे विधाता! धर्मनी सृष्टि करो. प्रभो! अनेकवार
भोगवाई चुकेला भोगोने हवे आप छोडो. फरीफरीने गमे तेटली वार भोगववा छतां
ए भोगोना स्वादमां कांई नवीनता आवी जती नथी; माटे ते भोगने छोडीने मोक्षने
माटे ऊठो ने उद्यमवडे मोहशत्रुने जीतो.