आकाशमार्गने प्रकाशित करता करता पोताना स्वर्गमां चाल्या गया. ते ज वखते
आसन डोलवाथी ईन्द्र वगेरे देवोए भगवानना तपकल्याणकनो अवसर जाण्यो ने सौ
ते उत्सव करवा अयोध्यानगरीमां आवी पहोंच्या. ने क्षीरसमुद्रना जळथी भगवाननो
महाअभिषेक कर्यो. भगवान ऋषभदेवे भारतवर्षना साम्राज्य पर भरतनो अभिषेक
कर्यो ने बाहुबलीने युवराजपद आप्युं.
बंने हर्षविभोर बन्या हता. एककोर तो भगवान कम्मर कसीने राजपाट त्यागी
तपसाम्राज्य माटे कटिबद्ध थया हता ने बीजी तरफ बंने राजकुमारोने पृथ्वीनुं राज्य
सोंपातुं हतुं. एक तरफ तो देवो भगवानना वनगमन माटे पालखी तैयार करता हता,
बीजी तरफ कारीगरो भरतना अभिषेक माटे मंडप अने महेल बनावता हता; एक
तरफ तो ईन्द्राणी रंगबेरंगी रत्नोना चोक पूरती हती, बीजी तरफ यशस्वती अने
सुनंदादेवी आनंदपूर्वक रंगावलीनी रचना करती हती. दिग्कुमारीदेवीओ मंगळद्रव्यो
लईने ऊभी हती..चारेकोर पडघम वगेरे मंगल वाजांना घमकार थई रह्या हता. आ
रीते करोडो देवो ने करोडो मनुष्यो एकसाथे बे उत्सव उजवी रह्या हता.
अयोध्यानगरीमां चारेकोर आनंद–आनंद फेलाई गयो हतो. बे पुत्रोने राज्यभार
सोंपीने, तथा बाकीना ९९ पुत्रोने पण राज्यनो अमुक भाग आपीने, दीक्षा माटे
भगवान एकदम नीराकुळ थई गया हता; संसार संबंधी कोई चिन्ता तेमने रही न
हती.
पोताना हाथनो सहारो आप्यो हतो. भगवान ऋषभदेव पहेलां तो परम विशुद्धता पर
आरूढ थया हता ने पछी पालखी पर आरूढ थया हता, तेथी ते समये भगवान एवा
लागता हता – जाणे के गुणस्थानोनी श्रेणी चडवानो ज अभ्यास करता होय.
भक्तिपूर्वक भगवाननी पालखी लईने प्रथम तो राजाओ सात पगलां चाल्या, पछी
विद्याधरो आकाशमार्गे सात पगलां चाल्या, ने त्यारबाद देवो अत्यंत हर्षपूर्वक