: फागण : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
हिंमतनगरमां संवरधर्म
हिंमतनगर (गुजरात) मां पंचकल्याणक–प्रतिष्ठामहोत्सव निमित्ते
पू. गुरुदेव आठ दिवस (माह सु. ४ थी ११) पधार्या हता; ते दरमियान
आ आत्मा असंख्यप्रदेशी उपयोगस्वरूप वस्तु छे. रागादि परभावो ते खरेखर
आत्माना चैतन्यक्षेत्रनो पाक नथी; चैतन्यक्षेत्रमां तो ज्ञानना ने आनंदना पाक पाके
एवो एनो स्वभाव छे. आवा आत्माने जेणे जाण्यो तेने अनंत भवनुं मूळ एक
क्षणमां छेदाई गयुं.
प्रभु, आत्मानुं हित करवा माटे आ ऊंचो अवसर छे. विकारनो जेमां स्पर्श
नथी–एवो जे भूतार्थ आत्मस्वभाव उपयोगस्वरूप छे, ते ज धर्मीने ध्याननुं ध्येय छे,
सम्यग्द्रष्टिनुं ध्यान खाली होय नहीं; एना ध्यानमां आनंदना तरंग उल्लसे छे. तारे
आत्माने ध्यानमां लेवो होय तो अच्छिन्नपणे रागथी भिन्न उपयोगनी भावना कर.
भेदज्ञाननी अच्छिन्न भावना वडे शुद्धात्मानुं ध्यान अने संवर थाय छे. –एनुं नाम धर्म छे.
रागनी भावना करे तेने तो आस्रवनी भावना छे; ते तो रागनी रुचिमां अटके
छे; एटले राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान नहि होवाथी ते बंधाय छे. राग अने ज्ञाननी
अत्यंत भिन्नतानी भावना वडे भेदज्ञान करवुं, ते भेदज्ञान ज सिद्धिनो उपाय छे.
भाई, आवुं भेदज्ञान निरंतर भाववा योग्य छे; आ मनुष्य अवतारमां ने आवा
सत्समागममां अपूर्व भेदज्ञाननो अवसर तने मळ्यो छे. तेथी कहे छे के अरे! आवो
अवसर आव्यो छे तो–
हे आत्मा! तुं चूकीश मा!
वालीडा मारा! तुं चूकीश मा!
आ अवसर तुं चूकीश मा!
साथीडा मारा तुं चूकीश मा!
आवो मोंघो अवसर अनंतकाळे मळ्यो छे, तेमां आत्माना भवनो अंत केम
आवे ने मोक्षसुख केम प्रगटे–एवो उपाय करजे.
भगवान पार्श्वनाथ प्रभुए आवो आत्मा साध्यो ने तीर्थंकर थईने आवो
उपयोगस्वरूप आत्मा जगतने देखाड्यो. तेनुं ज्ञान करवुं ते संवरधर्म छे.