: ३२ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
अमने...गमे
“तमने शुं गमे”–ए वात बालविभागना सभ्योने पूछी हती; घणा सभ्योए
उत्साहपूर्वक सरस जवाब लख्या छे. अमे विचारेलो टूंको जवाब आ छे के “–अमने
गमे आत्मा.” हवे बालविभागना नाना–मोटा सभ्योए पण पोताने शुं गमे ते संबंधी
जे विचारो लख्या छे. ते उपरथी बाळकोना हृदयमां केवी सुंदर भावनाओ रमी रही छे
तेनो ख्याल आवे छे. कोई लखे छे–अमने आतमराम गमे, कोई लखे छे अमने मोक्ष
गमे, कोई लखे छे के अमने मुनि थवुं गमे, कोई लखे छे के सम्यग्दर्शन गमे, तो कोई
लखे छे–अमने बालविभाग गमे. आ उपरांत बालविभागमां घणा बंधुओना पत्रो
आव्या छे, तेमना जवाबो वैशाख मासमां प्रगट करीशुं. माटे सौए धीरज राखवा
विनंति छे. बालविभाग प्रत्ये बाळकोनो खूब प्रेम होवाथी पोताना पत्रना जवाब माटे
तेओ खूब आतुर रहे–ए स्वाभाविक छे, परंतु गुरुदेव साथेना यात्राप्रवासमां
महत्वना कार्यक्रमोने लीधे आमां पहोंची शकातुं नथी. माटे बंधुओ, बे महिना धीरज
राखजो. आनंदथी धार्मिक अभ्यास करजो. आत्मधर्ममां यात्राप्रवासनुं थोडुं थोडुं वर्णन
आवे छे ते आनंदथी वांचजो. तमे पत्र लखवो होय तो खुशीथी (सोनगढना सरनामे)
लखजो. तमने धार्मिक उत्साह आपवा माटे ज आपणो बालविभाग छे. – जय जिनेन्द्र
अमने...गमे
“तमने शुं गमे?” तेना जवाबमां नीचेनुं
काव्य गोंडलना सभ्य नं. २४६ अरविंद
जैन तरफथी मळ्युं छे–जे अगाउ पण
आपणा बालविभागमां आवी गयुं छे:–
मनेगमे आतमाराम,
करुं शाने बीजुं काम;
तन–धनमां नहीं सुखनं नाम,
सुखशांतिनुं हुं छुं धाम.
जग जाणे नहीं एनुं नाम,
गुरु बतावे–सुखनुं धाम;
जेने समजाये आ भेद,
तेनो थाये संसार छेद.
सूचना:–
पू. गुरुदेव साथेना प्रवास
दरमियान गामे गामे जिज्ञासु साधर्मीओ
मळे छे, ‘आत्मधर्म’ संबंधी पोतानी
प्रसन्नता व्यक्त करे छे; अने आनंदथी
गुरुदेवनो लाभ ल्ये छे. ते उपरांत अनेक
जिज्ञासु पाठको तरफथी ‘आत्मधर्म’ ना
अंको न मळवा संबंधी मुश्केली पण रजु
करवामां आवे छे,–तो आ संबंधमां
जणाववानुं के रवानगी व्यवस्था संपादक
हस्तक नथी; माटे व्यवस्था बाबतमां जे
कांई सूचना के फरियाद होय ते ‘मेनेजर,
जैन– स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट” सोनगढ
(सौराष्ट्र)–ने लखवा विनंती छे.