Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९३
त्रण रूपिया फागण
वर्ष २४ : अंक प
सिद्ध प्रभुजी! आवो दिलमें.......
(हिंमतनगरमां अपूर्व मंगलाचरण)
ता. १३–२–६७ माह सुद ४ ना रोज हिंमतनगरमां
भव्यस्वागत बाद पांचेक हजार माणसोनी सभामां वंदितु
सव्वसिद्धे....... ए गाथा द्वारा भावभीनुं मंगलाचरण करतां
गुरुदेवे कह्युं–जुओ, अहीं मांगळिकमां सिद्ध भगवंतोनी प्रतिष्ठा करे
छे. साधक पोताना ज्ञानमां सिद्धभगवंतोने स्थापीने (प्रतीतमां
लईने) कहे छे के प्रभो! आवो...पधारो...मारा ज्ञानना आंगणे
आप बिराजो.... साधकपणाना मारा मंगल उत्सवमां आपने हुं
आमंत्रण आपुं छुं. जेम लग्न वखते साथे मोटा माणसोने तेडी
जाय छे–जेथी वच्चे कांई विघ्न न आवे. तेम अहीं लग्न एटले
आत्मानी लगनी लगाडीने, स्वरूपनी संधिपूर्वक सिद्धपदने साधतां
साधतां साधक पोतानी साथे साक्षी तरीके पंचपरमेष्ठी भगवंतोने
राखे छे...पंचपरमेष्ठीने साथे राखीने अप्रतिहतपणे मोक्षलक्ष्मीने
वरे छे. जुओ, आ प्रतिष्ठा–महोत्सव छे, तेमां मंगळ तरीके अहीं
आत्मामां सिद्ध प्रभुनी प्रतिष्ठा थाय छे. हे प्रभो! हुं मारी
मोक्षलक्ष्मीने साधवा तैयार थयो छुं तेमां शुद्धात्मानी प्रतीत करीने,
ज्ञाननी निर्मळदशामां आपने साथे राखुं