स्थापवामां आव्या. माननीय प्रमुखश्री नवनीतलालभाई झवेरीए उत्सवनुं उद्घाटन
करतां पं. श्री टोडरमलजी प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करी तेम ज गुरुदेव द्वारा जे महान
प्रभावना थई रही छे तेनो महिमा प्रगट कर्यो. पछी “श्री टोडरमल–स्मारिका” नुं
प्रकाशन थयुं, १प० पृष्ठनी स्मारिका उत्सव–कमिटिना अध्यक्ष शेठश्री पूरणचंदजी
गोदिकाए गुरुदेवने समर्पण करीने तेनुं उद्घाटन कर्युं हतुं. तथा ‘टोडरमल–ग्रंथमाळा’
ना केटलाक पुस्तकोनुं पण प्रकाशन करीने ते ग्रंथमाळानुं उद्घाटन करवामां आव्युं हतुं,
ग्रंथमाळाना पहेला पुष्परूपे पं. टोडरमलजीना मोक्षमार्गप्रकाशकनी ११००० प्रत
प्रकाशित थई हती. ते उपरांत जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाना बे पुस्तको तथा
‘अध्यात्मसन्देश’–पं. टोडरमलजीनी रहस्यपूर्ण चिठ्ठि उपरना पू. गुरुदेवना प्रवचनोनुं
पुस्तक वगेरे प्रकाशनो प्रगट थया हता. गुरुदेवे मंगलआशीर्वादरूपे ‘मंगलमय
मंगलकरण वीतराग विज्ञान’–ए श्लोकनो अर्थ करतां कह्युं के वीतरागी विज्ञान ते
मंगळरूपे छे, ने ते मंगळनुं कारण छे. भूतार्थस्वभाव आत्मा मंगळरूप छे, ते राग
वगरनो छे, तेना आश्रये सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करवा ते वीतरागीविज्ञान छे, ने ते
मंगळरूप छे. आचार्यदेव समयसारनी पांचमी गाथामां कहे छे के स्वसंवेदनरूप मारो जे
आत्मवैभव प्रगट्यो छे तेना वडे हुं एकत्वरूप शुद्ध आत्मा देखाडुं छुं, ते तमे तमारा
स्वानुभववडे प्रमाण करजो. आवा शुद्धआत्माने वीतराग विज्ञानवडे जाणवो–श्रद्धामां
लेवो ते मंगळमय छे; ने तेने माटे सन्तोना आशीर्वाद छे. गुरुदेवनुं भावभीनुं
आशीर्वादआत्मक प्रवचन सांभळीने सौने घणी प्रसन्नता थई. जयपुर–उत्सवमां
ईन्दोरना पं. श्री बंसीधरजी सिद्धांतशास्त्री, पं. श्री नाथुलालजी, तेम ज पं. श्री
कैलाशचंद्रजी, पं. श्री फूलचंदजी, पं. श्री जगन्मोहनलालजी वगेरे अनेक विद्वानो आव्या
हता, जयपुरना पं. श्री चैनसुखदासजी पण उत्सवमां भाग लेता हता; ने दरेक
विद्वानोए उत्सवसंबंधी पोतानी प्रसन्नता व्यक्त करीने पं. श्री टोडरमलजी प्रत्ये तथा
पू. गुरुदेव प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करी हती. अध्यक्षस्थानेथी प्रवचन करतां जैन
समाजना आगेवान श्रीमान् साहु शांतिप्रसादजी जैने पण टोडरमलजीना जीवन प्रत्ये
अंजलि आपीने गुरुदेव द्वारा तेमनो जे प्रचार ने जैनधर्मनी प्रभावना थई रहेल छे ते
प्रत्ये प्रसन्नता व्यक्त करीने अभिनंदन तथा श्रद्धांजलि आपी हती. विशेषमां,
गुरुदेवना सान्निध्यमां भगवाननी प्रतिष्ठानो तथा स्मारक–