Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
मुख्य रस्ताओ उपरथी पसार थती त्यारे लाखो नगरजनो आश्चर्यथी नीहाळी रहेता
हता. दश दश दिवसनो उत्सवनो उल्लास आजे जाणे भेगो थईने एकसामटो प्रसिद्ध
थयो हतो. करफ्युना कारणे आठ दिवसथी सुमसाम देखाती नगरीमां पचीस हजार
माणसोनुं उल्लासभर्युं ठाठमाठ सहितनुं आवुं जुलुस देखीने, जैनधर्मनो आवो महान
प्रभाव देखीने, अत्यंत हर्षोल्लास थतो हतो के वाह! कहान गुरुनो प्रभाव...भारतमां
अजोड छे. नगरीमां आवेला परदेशी प्रवासीओ पण आ प्रभावशाळी रथयात्रा देखीने
मुग्ध बनी जता हता. रथयात्रा अढी कलाक सुधी नगरीमां फरी हती. राजस्थानी,
गुजराती ने मुलतानी–बधा भक्तोनी भजनमंडळी अत्यंत उल्लासपूर्वक भक्ति करती
हती, ने घणा भक्तो आनंदथी नाची ऊठ्या हता, सौ कहेता–आवी भव्य रथयात्रा कदी
जोई नथी. गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने पंडितो मुग्ध बनता, ने रथयात्रा देखीने पं.
चैनसुखदासजी कहेता हता के आ धर्मप्रभावनानो महान प्रवाह कानजीस्वामी द्वारा
चाल्यो छे ते कोईथी रोकी शकाय तेम नथी. रथयात्रा ज्यारे झवेरी बजारमां आवी
त्यारे तो नगरीना रस्ताओ उभराई गया हता, रस्ताओ ज नहीं परंतु मकानोनी
मोटी अगाशीओ ने अटारीओ पण हजारो माणसोनी भीडथी उभराता हता. दश
दिवसथी करफ्युना प्रतिबंधमां बंधायेली नगरी आजे जाणे मुक्तिनो आनंद माणी रही
हती, सौ कहेता के दशे दिवसनुं साटुं आ एक रथयात्रामां वाळी लीधुं. श्री गोदिकाजी
आजे खूब ज प्रसन्न हता ने हाथी उपर धर्मध्वज फरकावता हता. गुरुदेव पण बे
कलाक सुधी भक्तिभावपूर्वक भगवानना सारथि तरीके रथमां बेठा हता ने भक्तो
आनंदपूर्वक प्रभुजीनो रथ हाथोहाथ चलावता हता. रथयात्रानुं विशेष वर्णन केटलुं
लखाय? केमके–
कल्याणकाळ प्रत्यक्ष प्रभुको लखें जे सुरनर घनें,
तिह समयकी आनंद महिमा कहत क्यों मुखसों बने?
रथयात्रानुं सरघस नगरीमां फरीने रामलीला मेदानमां समाप्त थयुं. मेदानमां
जेवो प्रभुश्रीनो रथ प्रवेश्यो के तरत एकसाथे १८ हाथीओए सूंढ ऊंची करीने सलामी
आपी, ऊंटोए पोतानी सुसज्जित डोक एना करतां पण वधुं ऊंची करीने सलामी
आपी, वाजां एनाथी पण वधु अवाजे गाजी ऊठया, ने हजारो भक्तोना हर्षनादे
आनंदसन्देश आकाशमां पहोंचाडी दीधो. बराबर ए ज वखते कुदरत पण