Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधम" : चैत्र : २४९३
अहा, ए वखतना गुरुदेवना भावो अद्भुत हता. यात्रा वखते जेवा भावो गुरुदेवना
हृदयमां घोळाता हता, एवा ज भावो पू. बेनश्रीबेने आ स्तवनमां भरी दीधा हता.
(पूरुं स्तवन आ अंकमां आप्युं छे.)
आम आनंदपूर्वक यात्रा पूरी थई; आ यात्रानी आनंदकारी स्मृतिरूपे
शिखरजीनी सौथी ऊंची टूंक उपर बेठाबेठा गुरुदेवे हस्ताक्षरमां लख्युं के ‘सम्मेदशिखर
की जय हो...जय हो!
सेंकडो यात्रिको पण गुरुदेव साथे आनंदकारी यात्रा पूरी करीने जयजयकार
गजावता पहाड उपरथी उतरवा मांड्या...पू. बेनश्रीबेन पण साथे ने साथे ज हता.
आनंदमंगलना गीत गातां गातां दोढ वागे नीचे आवी पहोंच्या...ने महानसिद्धिधामनी
यात्रा करावनार कहान गुरुना जयजयकारथी तीर्थधाम गूंजी ऊठ्युं.
तीर्थधाममां यात्रिकोनो आनंदकारी मेळो हतो ने यात्रिको जिनेन्द्रवैभवना
दर्शन–पूजन उमंगथी करता हता, तीर्थमां फरता हता ने तीर्थमहिमानी चर्चा करता हता.
फागण वद बीजना रोज तीर्थयात्रानी खुशालीमां जिनेन्द्रदेवनी भव्य रथयात्रा नीकळी
हती, जिनरथना सारथि तरीके कहानगुरु शोभता हता, ने पांडुकशिला पर
जिनेन्द्रदेवनो प्रथम अभिषेक गुरुदेवना सुहस्ते थयो हतो. रात्रे जिनेन्द्रभक्ति थई
हती, फागण वद त्रीज (ता. २८ ना रोज) बसना यात्रिको चंपापुरी–मंदारगिरि
तीर्थनी यात्राए गया हता. मंदारगिरि–चंपापुरीमां वासुपूज्य भगवानना पांच
कल्याणक थया छे. दश वर्ष पहेलांनी तीर्थयात्रामां फागण सुद ११ ना दिवसे चंपापुरीमां
गुरुदेवे वासुपूज्य प्रभुनो अभिषेक कर्यो हतो ने घणा हर्षोल्लासथी यात्रा करी हती.
ता. २८ नी बपोरे गुरुदेव वगेरे ईसरी–आश्रममां पधार्या हता, त्यां दर्शन–भक्ति कर्या
हता. फागण वद (ता. २९) ना रोज गिरडीहना समाजनी विनंतिथी गुरुदेवनुं प्रवचन
गिरडीहमां थयुं हतुं. गिरडीह जतां वच्चे रस्तामां जाृंभिकागामनी ऋजुवालिका नदी
आवे छे (जेने अत्यारे बराकर नदी तरीके ओळखवामां आवे छे)–ते नदी किनारे
महावीर भगवानने केवळज्ञान थयुं हतुं, ते मंगल क्षेत्रनुं अवलोकन कर्युं. तथा
पार्श्वनाथ भगवानना केवळज्ञाननो आजे मंगळ दिवस हतो. आम क्षेत्रमंगळ ने
काळमंगळ उपरांत भावमंगळनुं स्वरूप (एटले के सर्वज्ञदेवनी परमार्थ स्तुतिनुं
स्वरूप) समयसारनी ३१ मी गाथा द्वारा गुरुदेवे समजाव्युं.