पूजन–भक्ति करतां विशेष भावो जागे छे.
विपुलाचलधामना दर्शनथी घणो आनंद थयो; एने जोतां भगवाननुं समवसरण ने
गौतमस्वामीनुं गणधरपद, बार अंगनी रचना, मुनिसुव्रत भगवानना चार कल्याणक,
वगेरेनुं स्मरण थतुं हतुं. आ राजगृही २३ तीर्थंकर भगवंतोना समवसरणथी पावन
थयेली छे. गुरुदेव साथे राजगृहीना जिनालयमां तीर्थपूजा करी, पू. बेनश्री–बेने भक्ति
पण करावी; घणा यात्रिकोए पंच पहाडीनी यात्रा करी. पाछा फरतां नालंदाना अने
कुंडलपुर–जिनालयना दर्शन कर्या, फरी पावापुर आवीने वीरप्रभुना मोक्षधाममां
भावभीनां भक्ति–पूजन बेनश्री–बेने कराव्या, बपोरे पावापुरीना बीजा स्थानोनुं
अवलोकन कर्युं. जलमंदिर सामेना एक मंदिरमां वीरप्रभुना प्राचीन चरणकमळ बिराजे
छे त्यां पण भावथी दर्शन कर्या. बपोरे जलमंदिरमां वीरचरणना अभिषेकपूर्वक भक्ति
थई हती; अहा! चैतन्यरसभीनी भक्तिवडे साधकसन्तो सिद्धालयमां आनंदधाममां
बिराजमान सिद्धभगवंतोनो साक्षात्कार करावता हता, ने विधविध प्रकारे परम महिमा
करता हता. यात्रामां आवा अपूर्व भावो जोवानो अवसर मळतां भक्तो धन्यता
अनुभवता हता. रात्रे पण जलमंदिरमां भक्ति थई हती. आम आनंदपूर्वक पावापुरी
तीर्थधाम सिद्धक्षेत्रमां गुरुदेव साथे बे दिवस रहीने भक्ति–पूजन कर्या.
रस्तामां ज्यां जुओ त्यां अबरखना ढगला नजरे पडे छे. अबरखनो उद्योग मोटा
पाया पर चाले छे. बपोरे प्रवचनमां अबरखनुं द्रष्टांत आपतां गुरुदेवे कह्युं के जेम
अबरखमां अनेक पड छे तेम चैतन्यशक्तिमां केवळज्ञानना अनंता पड उखडे एवी
ताकात छे; अनंत केवळज्ञान ने आनंदनी पर्याय खीले तोपण आत्मानी ज्ञान ने
आनंदनी शक्ति कदी ओछी थाय नहि. प्रवचन पछी तुरत प्रस्थान करीने संघ अने
गुरुदेव हजारीबाग आव्या. रात्रे स्वागतपूर्वक गुरुदेव जिनालयमां पधार्या ने त्यां
मंगल–प्रवचन कर्युं.