सुपुत्री ब्र. कोकिलाबेन सोनगढ ब्रह्मचर्याश्रममां पू. बेनश्री–बेननी छायामां रहे छे,
तेमनुं आ गाम होवाथी विशेष उत्साह हतो; शेठश्री नरभेरामभाई कामाणी वगेरे पण
वधु श्रोताजनो वच्चे मांगळिक तरीके गुरुदेवे “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:”
ए सूत्र उपर विवेचन करीने वीतरागी मोक्षमार्गनुं स्वरूप समजाव्युं. बपोरना
प्रवचनमां “हे जगतना जीवो! हवे तो जड–चेतननी एकत्वबुद्धिरूप मोहने छोडो!”–ए
श्लोक उपर गुरुदेवे विवेचन करीने भेदज्ञाननी प्रेरणा आपी हती. प्रवचन बाद
जिनमंदिरमां उल्लासपूर्वक भक्ति थई हती. तथा रात्रे तत्त्वचर्चा थई हती. बीजे दिवसे
सवारमां जिनमंदिरमां सेंकडो यात्रिकोए समूह– पूजन कर्युं हतुं; अने बपोरे प्रवचन
पछी भक्ति थई हती. बंने दिवस यात्रासंघ उपरांत रांचीना सेंकडो जिज्ञासुओए
प्रवचनादिनो लाभ लीधो हतो ने प्रसन्नता व्यक्त करी हती. बे दिवसनो कार्यक्रम
धनबाद तरफ प्रस्थान कर्युं.
लीधो हतो. सांजे धनबादथी प्रस्थान करी आसनसोल रात रहीने, बीजे दिवसे
चिन्सुरा आव्या. त्यां जिनमंदिरमां शांत वातावरणमां प्राचीन जिनबिंबोना दर्शन
कर्या. जिनमंदिर साथे ज धर्मशाळा हती. सांजे कलकत्ता पहोंची गया.
पांचहजार श्रोताजनो होंशथी भाग लेता हता ने गुजराती तथा मारवाडी साधर्मीओना
मधुर मिलननुं द्रश्य जोई आनंद थतो हतो. कलकत्तानी भीडमां मुमुक्षुओने थतुं के क्यां
सिद्धिधाम सम्मेदशिखरजीनुं उपशांत वातावरण! ने क्यां आ नगरीनी भीड! आम
भीड वच्चे त्रण दिवस पसार कर्या. ते दरमियान नयामंदिरमां भक्ति–पूजनना कार्यक्रमो
राख्या हता. बेलगछिया पार्श्वनाथ जिनमंदिरना दर्शन कर्या. चोथे दिवसे सांजे गुरुदेवे
कलकत्ताथी प्रस्थान कर्युं.