: १६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९३
चार जीवो आ भरतक्षेत्रमां आव्या छीए. अहीं भगवाननी समीपमां आजे समाजमां
आ वात हुं जाहेर करुं छुं.
गुरुदेवना श्रीमुखथी वारंवार आवी आनंदकारी जाहेरात सांभळतां भक्तोने
घणो ज हर्ष थतो हतो. आम तो गुरुदेव घणा भक्तोने अवारनवार ए वात करता,
पण भरसभा वच्चे, आटली महान प्रसन्नता पूर्वक अने सीमंधर भगवाननी साक्षीमां
गुरुदेवे आजे जे प्रसिद्धि करी ते खास नवीनता हती. ने श्रोताजनो ए सांभळी धन्यता
अनुभवता हता. वाह! आजनी यात्रा सफळ थई. गुरुदेव पण अहींना प्रसंगने फरी
फरी सेंकडोवार आनंदथी याद करे छे.
अहींना सीमंधर भगवाननी प्रतिमानुं चित्र अगाउ आत्मधर्ममां प्रसिद्ध थई
गयेल छे.
आ प्रतिमाजी प०० वर्ष पहेलांना स्थापित होवा छतां अत्यार सुधी प्रसिद्ध केम
न हता, ने हमणां ज केम प्रसिद्धिमां आव्या? ते संबंधी ईतिहास पण जाणवा जेवो छे.
जिनमंदिरनी जे वेदी उपर आ भगवान बिराजे छे ते वेदी उपर बीजा पण अनेक
प्रतिमाजी बिराजता हता; तेमां आ प्रतिमाजीना आगला भागमां बीजा एक प्रतिमाजी
एवी रीते हता के तेना वडे सीमंधर भगवाननी मूर्ति उपरनो लेख ढंकाई जतो हतो.
ने छेल्ला बसो वर्षोथी परंपरागत लोको चंदाप्रभु तरीके आ भगवाननी पूजा करता
आव्या छे. एवामां गुरुदेवनो प्रभाव अने प्रचार बयाना सुधी पहोंच्या. बयानाना
जिज्ञासुओए आत्मधर्म द्वारा तथा अभिनंदन–ग्रंथमां छपायेल सीमंधरप्रभुनी
प्रतिमाना अनेक चित्रो जोया...तेमनी मुद्रा जाणे के आ भगवानने मळती आवती होय
तेम तेमने लाग्युं. (विशेषमां आ वेदी उपर बिराजमान बीजी अनेक प्रतिमाओनी
नेत्रद्रष्टि करतां आ भगवाननी नेत्रद्रष्टिमां एक विशेषता छे.) तेथी वच्चेना बीजा
प्रतिमाजीने एक तरफ लईने आ प्रतिमा उपरनो लेख वांच्यो. लेख वांच्यो अने
पूजारीने आश्चर्य थयुं के अरे! यह चंदाप्रभु सीमंधरस्वामी कैसे बन गये? तेमने माटे
आ एक आश्चर्यनी वात हती, एटले जैन पत्रोमां ए वात प्रसिद्ध करी. ने ए रीते
बयानाना आ सीमंधर भगवान प्रसिद्ध थया. पछी तो आपणे तेनो खास फोटो
मंगावीने आत्मधर्ममां ते प्रसिद्ध कर्यो. ने आजे गुरुदेवे तेमनी साक्षात् यात्रा करीने आ
सीमंधर भगवानने सारा भारतमां प्रसिद्ध करी दीधा. एटलुं ज नहि, ए
सीमंधरभगवान साथेना पूर्वभवना संबंधने पण आनंदपूर्वक प्रसिद्ध करीने महान
मंगल कर्युं.
सीमंधर भगवाननो जय हो!