Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 41

background image
: १८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९३
चैतन्यरसना अनुभवनो उपदेश
(रांची शहेरमां प्रवचन : फागण वद ८–९ स. कळश २२)
आचार्यदेव आत्माना अनुभवनो अने मोहने छोडवानो उपदेश आपे छे–हे
जीवो! –जगतना बधा जीवोने कहे छे के हे जीवो! तमे चैतन्यरसिक थईने, परद्रव्य
साथेनी एकत्वबुद्धिरूप मोहने छोडो. शरीरादि परद्रव्य साथे एकत्वबुद्धिरूप जे मोह छे
ते दुःखदायक छे, ते एकक्षण पण राखवा जेवी नथी. स्वानुभवप्रत्यक्षरूप जे शुद्ध
चैतन्यवस्तु छे ते आनंदरूप छे, तेना रसिक थईने आनंदनो अनुभव करो.
चोथा गुणस्थानना मति–श्रुतज्ञान वडे पण आत्माना स्वसंवेदनप्रत्यक्ष वडे
आनंदनो अनुभव थाय छे. ते आनंदनी जात केवळज्ञानीना आनंद जेवी ज छे. आवा
आत्माना आनंदना अनुभव वगर, राग साथे एकत्वबुद्धिथी जीव संसारमां
दुःखअनुभवी रह्यो छे. दुःखनुं कारण स्व–परनी एकत्वबुद्धि अने सुखनुं कारण स्व–
परनुं भेदविज्ञान छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के–
जे कोई जीवो सिद्ध थया छे तेओ भेदज्ञानथी ज सिद्ध थया छे.
जे कोई बंधाया छे तेओ भेदज्ञानना अभावथी ज बंधाया छे.
भेदज्ञाननो अभाव एटले के स्व–परनी एकत्वबुद्धिरूप मोह ते ज दुःख अने
संसार छे. राग अने ज्ञान वच्चे सूक्ष्म लक्षणभेद छे, बंनेने एकता नथी, पण वच्चे
सांध छे, एटले भेदज्ञानरूप छीणीवडे ते बंने जुदा पडी जाय छे. भेदज्ञान एटले ज्ञान
अने रागना भिन्न भिन्न लक्षणना ज्ञान वडे, शुद्ध आत्मानुं स्वसंवेदन थाय छे ने
रागादि भावो जुदा रही जाय छे. बंनेनुं स्वरूप जुदुं छे एटले बंने जुदा पडी शके छे.
आत्मा अने ज्ञान कदी जुदा न पडी शके, पण आत्मा अने राग जुदा पडी शके छे, केमके
ज्ञान आत्मानुं स्वलक्षण छे पण राग आत्मानुं स्वलक्षण नथी. ज्ञाननुं वेदन तो
आनंदरूप छे, ने रागनुं वेदन दुःखरूप छे, एम वेदनवडे बंनेना स्वादनी भिन्नता
जाणीने, हे जीवो! तमे चैतन्यना अत्यंत मधुर शांतरसना रसिक बनो, ने रागनो रस
छोडो. आत्माना स्वभावभूत ज्ञान, अने अनात्मारूप राग–ए बंनेने कदी एकमेकपणुं
थयुं नथी; बंनेनी जात ज