Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : १९ :
जुदी छे, तेमने कदी एकता थई शकती नथी, –आम भिन्नता जाणीने रागना कर्तृत्वरूप
(एटले के एकत्वबुद्धिरूप) मोहने छोडो, ने आत्मरसिक जनोने वहालुं एवुं जे आ
ज्ञान तेनो स्वाद ल्यो. –आवो अनुभव ते मोक्षमार्ग छे; ते ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
छे. आवा अनुभव विना भवभ्रमणनो अंत आवतो नथी.
आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे, ज्ञानस्वरूप आत्मानुं कार्य तो ज्ञानरूप ज होय;
ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञान सिवाय बीजुं शुं करे? ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञान सिवाय बीजा
भावोने (रागादिने) करे एवो अज्ञानीनो मोह छे. भाई, ज्ञान ज्ञानने अनुभवे ए ज
मोक्षनी क्रिया छे.
आवो अनुभव कया गुणस्थाने थाय? तो कहे छे के चोथा गुणस्थानेथी ज
आवो निर्विकल्प अनुभव थाय छे. भले सतत एवी निर्विकल्पदशा टकती नथी, पण
चोथुं गुणस्थान प्रगटाववाना काळे तो आवी निर्विकल्पदशा जरूर होय छे. चोथा
गुणस्थाने सम्यग्दर्शननी साथे आत्माना सर्वे गुणोनो एकअंश प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन
थतां आत्मानुं परिणमन पलटी गयुं, अतीन्द्रिय आनंदनो अंश प्रगट्यो, ज्ञाननो अंश
प्रगट्यो, चारित्रनो अंश प्रगट्यो, –एम अनंतगुणनो अंश प्रगट्यो. अहो, चोथा
गुणस्थाननी दशा कोई अलौकिक छे; ए तो मोक्षमार्गमां आवी गयो, एने
केवळज्ञाननी बीज प्रगटी; तेने हवे केवळज्ञानरूप पूनम होगी... होगी ने होगी. जे जीव
स्वानुभवनो प्रयत्न करे छे ते जरूर मोक्षमार्ग पामे छे. साचो प्रयत्न करनारने कोई
विघ्न छे ज नहीं. भगवानना उपदेश अनुसार जे जीव उद्यम वडे मोक्षनो उपाय करे छे
तेने तो मोक्ष जरूर थाय छे.
भाई! तें चैतन्यरसनी रुचि छोडीने मोहथी मात्र रागनो रस अनुभव्यो छे,
चैतन्यना खरा रसने तें जाण्यो नथी. एकवार रागथी पार थईने अंतरमां तारा
चैतन्यतत्त्वने देख... तारा चैतन्यप्रकाशमां अंधारूं नथी. ‘आ अंधारूं छे’ –एम पण
जाणे छे कोण? अंधाराने जाणनारो पोते अंधारारूप नथी, अंधाराने जाणनार पोते तो
ज्ञानप्रकाशमय छे. तेम रागादि परभावो चैतन्यप्रकाशथी भिन्न अंधकार जेवा छे, तेओ
पोते पोताने जाणता नथी. जेम अंधाराने खबर नथी के हुं अंधकार छुं; तेम रागने
खबर नथी के हुं राग छुं. रागने जाणनार रागथी जुदो छे. रागने जाणनारो पोते
रागरूप थई जतो नथी; रागथी भिन्न एवुं जे ज्ञान, ते ज रागने तेमज पोताने जाणे
छे. आवा जाणनार स्वतत्त्वनो महिमा करवो, तेनो रस एटले रुचि करवी अने तेनो
अनुभव करवो ते मोक्षनो मार्ग छे. माटे मोक्षार्थीने आवो अनुभव करवानो उपदेश छे.
तेना वडे मोक्षरूप कार्यनी सिद्धि थाय छे.