Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
अनंत मुनिश्वरे स्वरूप साध्या, अनंता क्षपकश्रेणीमां चडीया;
प्रगट्या केवळज्ञान...प्रभुजीने लाखो प्रणाम...
पाम्या सिद्धि महान...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... ७
ईन्द्र–नरेन्द्रोना वृंदो उतरे, प्रभुजीना चरणे शीश झुकावे;
गीरीराज महान...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... ८
समवसरण अद्भुत रचावे, दिव्यध्वनिना नादो गाजे;
एवा शिखरना धाम...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... ९
वनवृक्षोनी घटाथी सोहे, मनहर चैतन्यधाम बतावे;
सर्व गीरी शिरताज...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... १०
अनंत तीर्थंकर स्मरणे आवे, अनंत मुनिना ध्यानो स्फूरे;
पावन सम्मेदा धाम...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... ११
भरतभूमिमां अनंत चोवीशी, शिखरजी पाम्या सिद्धि;
महिमावंत महान...प्रभुजीने लाखो प्रणाम...
वंदन सिद्ध भगवान...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... १२
ईन्द्रो सुरेन्द्रो तुजने पूजे, आनंद मंगळ नित्ये वर्ते;
उन्नत शिखरधाम...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... १३
आवा पवित्र धामने नीरख्ये, अंतरमां आनंद बहु उछळे;
वंदन वारंवार...प्रभुजीने लाखो प्रणाम...
वंदन हो अनंत प्रभुजीने लाखो प्रणाम... १४
अपूर्व यात्रा गुरुदेव साथे अंतरमां कोई आनंद उल्लसे;
वंदन हो गुरुराज...प्रभुजीने लाखो प्रणाम... १प