Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
साक्षात् दर्शन कर्या. ते ज सीमंधर भगवान अत्यारे पण पूर्व विदेहमां बिराजे छे.
स्थापना अपेक्षाए आपणे अहीं पण सीमंधर भगवान बिराजे छे. अहीं प्रतिमाजी
प१६ वर्ष प्राचीन (सं. १प०७) ना छे. तेमां लेखमां लख्युं छे के–
पूर्वविदेहके तीर्थकर्ता श्री जीवन्तस्वामी। श्री श्रीमंधरस्वामी।।...............
सूर्य पूर्वदिशामां ऊगे छे, तेम भगवान सीमंधरस्वामी पण पूर्व दिशामां बिराजे
छे. तेमनी वाणी सांभळीने समयसार रचतां कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के हुं सिद्ध ने तुं
सिद्ध; तारामां सिद्धपणुं भर्युं छे...तेने ओळखीने आदर कर. तारी प्रभुता तारामां भरी
छे. (आम कहीने गुरुदेवे खूब भावथी गायुं के–)
सीमंधर प्रभुका यह बोल...कि...
तेरा प्रभु तेरेमें डोले...
सीमंधर नाथका यह बोल...कि...
भाई, तारी प्रभुता तारामां भरी छे. अनंता सिद्धोने तारामां समावी दे–एवडी
तारी ताकात छे. अनंत सिद्धने आत्मामां स्थापे तेने राग के अल्पज्ञतानी रुचि रहे
नहि, एटले राग तोडीने ते सर्वज्ञ थई जाय. –एवुं आ समयसारनुं अपूर्व मांगळिक
छे.
सीमंधरप्रभुनी पासे जईने आचार्यदेव आवो माल भरतक्षेत्रना जीवोने माटे
लाव्या. आत्मानी प्रभुता लाव्या...तेओ कहे छे के तमारा ज्ञानमां तमे सिद्धपदनो आदर
करो. विकल्पमां पण सिद्धनो ज आदर करो. एना आदरना विकल्पवडे ऊंचा पुण्य
बंधाय छे; ने शुद्धद्रष्टि द्वारा अंतरना ज्ञानमां सिद्धनो आदर करतां शुद्धतानी वृद्धि थाय
छे; –आ मांगळिक छे.
सीमंधर भगवाननी समीप जईने आव्या बाद कुंदकुंदाचार्यदेवे आ मंगळगाथा
बनावी छे, ने अहीं सीमंधर भगवाननी समीपमां ते वंचाय छे. तारा ज्ञानमां
सिद्धपदनो आदर करीने सांभळ, तेरे सिद्धपद प्रगट हो जायगा और तुं सर्वज्ञ बन
जायगा.
साधक अनंत सिद्धो अने सर्वज्ञोने साक्षीपणे राखीने अंतरमां सिद्धपदने साधे
छे. मोक्षने साधवा आत्मानी लगनी लगाडी, तेमां अनंता सिद्धो अमारी जानमां साथे
छे, हवे अमारी केवळज्ञानकन्या लेवामां वच्चे विघ्न आवे नहि. केवळज्ञान प्राप्त थाय
थाय ने थाय ज. –आवा अपूर्व मंगळपूर्वक आचार्यदेवे समयसारमां शुद्धात्मानुं स्वरूप
देखाड्युं छे. सीमंधर भगवान अहीं बिराजे छे, तेमनी समीपमां ज आ वात चाले छे.
सोनगढमां पण